भोपाल। कमलनाथ मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश के नवनिर्वाचित विधायकों, वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं से राय-मशवरा करने के बाद कमलनाथ को मध्यप्रदेश के सत्ता की कमान सौंपी। इससे पहले देर रात तक राज्य के पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री पद के दोनों दावेदारों कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ दिल्ली में अपने निवास पर बैठक भी की। प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को समझाया जिसके बाद जाकर मुख्यमंत्री के नाम का एलान हो सका। इस फैसले की पीछे क्या कारण रहे। जानिए वो पांच वजहें जो कमलनाथ के पक्ष में गईं।
1. चुनावी मैनेजमेंट के साथ संगठन पर पकड़
करीब चार दशक के लंबे सियासी सफर के दौरान कमलनाथ मध्यप्रदेश के हर पहलू से वाकिफ हैं। नौ बार से सांसद और केंद्रीय कैबिनेट में शामिल रहने के कारण कमलनाथ ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में मजबूत पकड़ बनाई है। जिस तरह मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद उन्होंने संगठन से लेकर सरकार बनाने तक चुनावी मैनेजमेंट बखूबी किया। साथ ही अपनी टीम भी खड़ी की। यह कौशल सरकार बनने के बाद भी वे ही दिखा पाएंगे।
2. सभी समीकरण साधने का कौशल
आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, अजय सिंह, अरुण यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज नेताओं के बीच आपसी तालमेल सिर्फ कमलनाथ ही बैठा पाएंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बताते हैं कि दिग्विजय सिंह के अलावा किसी अन्य नेता का मध्य प्रदेश में कार्यकर्ताओं के बीच दबदबा कायम है तो वो कमलनाथ हैं। हालांकि युवाओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्लैमर है।
3. लंबा राजनीतिक अनुभव
कमलनाथ के लंबे सियासी सफर की तुलना में ज्योतिरादित्य सिंधिया काफी युवा हैं। मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से लगातार नौ बार सांसद होने का रिकॉर्ड कमलनाथ के नाम है। उन्हें लोकसभा के अति वरिष्ठ सांसदों में शुमार होने का गौरव प्राप्त है। कमलनाथ पहली बार सातवीं लोकसभा यानी 1980 में संसद पहुंचे। इसके बाद वे फिर 1985, 1989 और 1991 में भी जीते।
वे जून 1991 में पहली बार केंद्रीय मंत्री बने और पर्यावरण और वन मंत्रालय में केंद्रीय राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार मिला। 1995 से 1996 तक उन्होंने केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार संभाला। कमलनाथ 1998 में 12वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और 1999 में 13वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए। 2001 से 2004 तक उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव का पद संभाला।
14वीं लोकसभा के लिए 2004 में फिर चुनाव जीतकर वे मनमोहन सरकार में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री बने। वे 2009 तक इस पद पर रहे। 2009 में फिर से छिंदवाड़ा सीट से जीते तो यूपीए दो सरकार में सड़क परिवहन मंत्री बने।
2011 में कैबिनेट फेरबदल में कमलनाथ को शहरी विकास मंत्री बनाया गया। इस मंत्रालय के साथ साथ कमलनाथ को अक्टूर 2012 में संसदीय कार्यमंत्री की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई। 2014 में मोदी लहर में जब कांग्रेस को सिर्फ 44 सीटें मिली तब कमलनाथ 16वीं लोकसभा के लिए छिंदवाड़ा से 9वीं बार चुने गए।
4. चुनाव लडऩे के लिए पैसे जुटाए
सियासी हलकों में चर्चा थी कि मध्यप्रदेश चुनाव में कांग्रेस पार्टी की आर्थिक स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं थी। केंद्र की सत्ता से हटने की वजह से कांग्रेस की तुलना में भाजपा को ज्यादा चंदा मिलने लगा। खबरों के मुताबिक तो मध्यप्रदेश में पार्टी फंड तक खाली हो गया था।
पार्टी सूत्रों के अनुसार ऐसे वक्त में कमलनाथ ने चुनाव लडऩे में पार्टी को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। कमलनाथ दो दर्जन से अधिक कंपनियों के मालिक हैं और उनकी आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है। मनमोहन सरकार में सबसे धनी केंद्रीय मंत्री होने का रिकॉर्ड भी उनके नाम रहा है। वर्ष 2011 में केंद्रीय मंत्री रहते कमलनाथ ने 2.73 अरब रुपये की संपत्ति घोषित की थी।
5. गांधी परिवार से नजदीकी रिश्ता
कमलनाथ नेहरू-गांधी परिवार के काफी करीबी माने जाते हैं। कमलनाथ दून स्कूल में पढ़ते थे और संजय गांधी के बचपन के दोस्त रहे हैं। इस कारण इंदिरा गांधी से भी उनका नजदीकी रिश्ता रहा। कमलनाथ एक मैनेजमेंट संस्थान द इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नॉलजी (आईएमटी) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष रहे हैं।
कमलनाथ पीपीपी मॉडल और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, वर्ल्ड मार्केट की बारीक समझ रखते हैं। 2011 में दवोस में हुई वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम में कमलनाथ अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं।
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