रायपुर। छत्तीसगढ़ में भारी बहुमत से जीत के बाद कांग्रेस में मुख्यमंत्री की रेस में कई नेता हैं। जिन नेताओं का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है उसमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव शामिल हैं। भूपेश बघेल की छवि एक तेज तर्रार नेता के रूप में हैं, वहीं टीएस सिंहदेव एक शांत एवं सरल व सुलझे हुए नेता के रूप में अपनी अलग पहचान है। अब आला कमान को ही तय करना है कि छत्तीसगढ़ को कैसा सीएम चाहिए।
क्यों मजबूत हैं भूपेश बघेल
तेज तर्रार और आक्रामक छवि वाले नेता भूपेश बघेल को दिसंबर, 2013 में कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया। इस समय विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी हार के बाद कांग्रेसी कार्यकर्ता हताश और निराश थे। इसके बाद भूपेश बघेल ने सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा खोलकर कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करने का काम किया। फिर राशन कार्ड में कटौती का मुद्दा हो या किसानों की धान खरीदी और बोनस का मुद्दा, वह नसबंदी कांड का विरोध हो या फिर चिटफंड कंपनियों के पीडि़तों के साथ खड़े होने का मामला।
भूपेश ने कांग्रेस को सरकार के खिलाफ सड़क पर उतार दिया। कथित भ्रष्टाचार के मामले एक के बाद एक उजागर किए, जिस तरह से उन्होंने शक्तिशाली नौकरशाहों को खुले आम चुनौती दी उससे राज्य में कांग्रेस की छवि बदली। हालांकि इस बीच जमीन घोटाले, एक मंत्री के सेक्स सीडी कांड को लेकर भूपेश सरकार के निशाने पर भी रहे।
जोगी के खिलाफ कार्रवाई
अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की खरीद फरोख्त के मामले में जिस तरह से उन्होंने अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेता अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी को घेरा और फिर अमित जोगी को पार्टी से निष्कासित किया उसके बाद प्रदेश में यह धारणा बन गई कि भूपेश बघेल हिम्मत वाले नेता तो हैं। क्योंकि पहले कांग्रेस में दो गुट काम करते थे एक संगठन कांग्रेस और दूसरा जोगी कांग्रेस। कांग्रेस के दिग्गज नेता भी जोगी के खिलाफ खुलकर नहीं बोलते थे।
क्या अब भी है इस तेवर की जरूरत
भूपेश बघेल का तेजर्रार और सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर के कारण भले ही कांग्रेस की लहर छत्तीसगढ़ में चली और सत्ता का वनवास खत्म हुआ, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या अब भी कांग्रेस को उस तेवर की जरूरत है, जो भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया जाए? क्योंकि कांग्रेस आलाकमान छत्तीसगढ़ में एक ऐसे चेहरे को सामने लाना चाहेगी, जिसे वो देशभर में प्रोजेक्ट कर सके और उस चेहरे का लाभ आने वाले लोकसभा चुनाव में मिल सके। ऐसे में कोई हैरानी नहीं होगी कि कांग्रेस आलाकमान किसी राष्ट्रीय छवि वाले सौम्य चेहरे को प्रदेश का जिम्मा सौंप दे।
क्या इतना सरल होना भी ठीक है
कांग्रेस के सौम्य चेहरों में टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू हैं, लेकिन इन दोनों को नेता प्रतिपक्ष और सांसद होने के बावजूद सरकार के खिलाफ आमने सामने की लड़ाई में सड़क पर उतरते नहीं देखा गया।
कुछ विवाद भी हैं…
इसके अलावा पिछले लोकसभा चुनावों में सरोज पांडे की हार को लेकर बीजेपी में भीतरघात की खबरें आईं थीं। ताम्रध्वज सरोज पांडे को हराकर ही संसद पहुंचे थे। इसी तरह टीएस बाबा चुनाव में घोषणा पत्र तैयार करने के सिलसिले में जब जशपुर पहुंचे तो वहां उन्होंने जूदेव परिवार के पक्ष में एक बयान देकर सभी को चौंका दिया।
टीएस सिंहदेव ने खुलेआम बयान दिया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे दिलीप सिंह जूदेव के परिवार से जो भी चुनाव लड़ेगा, उसके खिलाफ प्रचार नहीं करूंगा। इसके अलावा 2016-17 में जब कांग्रेस संगठन ने ऐलान किया कि कोई भी कांग्रेसी सीएम के साथ मंच साझा नहीं करेगा तो टीएस सिंहदेव सरगुजा में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ मंच पर नजर आए।
छत्तीसगढ़ में नए मुख्यमंत्री के चेहरे को तय करने के लिए कांग्रेस के पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खडग़े को जिम्मेदारी दी गई है। मल्लिकार्जुन खडग़े ने विधायकों की आम राय ले ली है। खडग़े अब आला कमान को अपनी रिपोर्ट देंगे। इसके बाद छत्तीसगढ़ का नया सीएम तय हो जाएगा। बताया जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कार्यशैली और जाति वर्ग को ध्यान में रखकर कांग्रेस मुख्यमंत्री तय करेगी। ऐसे में आक्रामक? और सौम्य चेहरे में किसी एक को चुनना कांग्रेस आलाकमान के लिए चुनौती बन सकती है।
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