नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर की राजनीति ने बुधवार की शाम एकदम करवट ली। पीडीपी की अगुवाई में बुधवार को कुछ पार्टियों ने सरकार बनाने का न्योता भेजा तो राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कुछ ही मिनटों बाद राज्य की विधानसभा ही भंग कर दी।
राज्यपाल के इस फैसले की कई पार्टियां आलोचना कर रही हैं। राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने इस फैसले के पीछे के कारण भी बताए। उन्होंने कहा कि उन्हें आशंका थी कि सरकार बनाने के लिए खरीद-फरोख्त हो सकती है, इसलिए उन्हें ये फैसला लेना पड़ा। उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें महबूबा मुफ्ती या सज्जाद लोन की ओर से कोई खत नहीं मिला।
इसके अलावा राजभवन की ओर से बयान दिया गया कि राज्यपाल ने अहम कारणों से तत्काल प्रभाव से विधानसभा भंग करने का निर्णय लिया जिनमें ‘व्यापक खरीद फरोख्तÓ की आशंका और ‘विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं वाली पार्टियों के साथ आने से स्थिर सरकार बनना असंभव’ जैसी बातें शामिल हैं।
राजभवन ने बाद में एक बयान में कहा-राज्यपाल ने यह निर्णय अनेक सूत्रों के हवाले से प्राप्त सामग्री के आधार पर लिया। उन्होंने ये भी कहा कि जरूरी नहीं कि राज्य के चुनाव अभी हों, ये चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ भी कराए जा सकते हैं।
इनमें अहम कारणों में से मुख्य कारण का जिक्र करते हुए कहा गया है कि विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं वाली पार्टियों के साथ आने से स्थाई सरकार बनना असंभव है। इनमें से कुछ पार्टियों तो विधानसभा भंग करने की मांग भी करती थीं।
बयान में कहा गया कि इसके अलावा पिछले कुछ वर्ष का अनुभव यह बताता है कि खंडित जनादेश से स्थाई सरकार बनाना संभव नहीं है। ऐसी पार्टियों का साथ आना जिम्मेदार सरकार बनाने की बजाए सत्ता हासिल करने का प्रयास है।
बयान में आगे कहा गया व्यापक खरीद फरोख्त होने और सरकार बनाने के लिए बेहद अलग राजनीतिक विचारधाराओं के विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए धन के लेन देन होने की आशंका की रिपोर्टें हैं, ऐसी गतिविधियां लोकतंत्र के लिए हानिकारक हैं और राजनीतिक प्रक्रिया को दूषित करती हैं।
उन्होंने कहा कि बहुमत के लिए अलग अलग दावें हैं वहां ऐसी व्यवस्था की उम्र कितनी लंबी होगी इस पर भी संदेह है। इसमें कहा गया जम्मू कश्मीर की नाजुक सुरक्षा व्यवस्था जहां सुरक्षा बलों के लिए स्थाई और सहयोगात्मक माहौल की जरूरत है, ये बल आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगे हुए हैं और अंतत: सुरक्षा स्थिति पर नियंत्रण पा रहे हैं।
गौरतलब है कि बुधवार शाम को महबूबा मुफ्ती ने पीडीपी के 29, एनसी के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों को मिलाकर 56 विधायकों का समर्थन हासिल होने का दावा करते हुए सरकार बनाने की पेशकश की थी।
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