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सौ फीट का बनेगा घेर…16 घंटे तक नर्तक करेंगे कला का प्रदर्शन…राउत नाच महोत्सव 1 को…

बिलासपुर। एक दिसंबर को लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में 41वें राउत नाच महोत्सव की धूम रहेगी। इसमें करीब 16 घंटे तक यदुवंशी सौ फीट के घेर में अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। इसमें सौ से भी ज्यादा दलों के नर्तकों शामिल होंगे।

गड़वाबाजा की धुन पर पारंपरिक वेशभूषा में संवर कर लोककला की प्रस्तुति देंगे। आकर्षक झांकी के साथ ही दोहे सभी के लिए आकर्षण का केंद्र होंगे। दोहों के माध्यम से अपने शुभचिंतकों और परिचितों व समाज की खुशहाली की कामना करेंगे। मालूम हो कि महोत्सव में पहले आसपास के ही दल आते थे। धीरे-धीरे आयोजन भव्य होता गया और पूरे राज्य में इसकी पहचान बनी। पारंपरिक आयोजन में पूरे राज्य के यदुवंशी आते हैं और आकर्षक झांकी के साथ शौर्य प्रदर्शन करते हुए अपनी कला पेश करते हैं।



राउत नाच महोत्सव आयोजन समिति के संयोजक कालीचरण यादव ने बताया कि पहले इसका स्वरूप अलग था लेकिन समय के साथ बदलाव हुआ और अब यदुवंशी आपसी विवादों को भूलकर सिर्फ अपनी परंपरा को सहेजने हुए प्रस्तुति देते रहे। यह आज भी कायम है।

मिलता है लाखों का पुरस्कार
यदुवंशी आयोजन का हिस्सा बनकर शौर्य प्रदर्शन करते हुए कृष्ण लीला और राम भक्ति का बखान करते हैं। आयोजन समिति की ओर से इन दलों को नकद राशि व रनिंग शील्ड दिया जाता है। इसके साथ ही प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहने वालों को लाखों के पुरस्कार भी दिए जाते हैं। सांतवना पुरस्कार भी मिलता है।



वर्ष 1978 में हुई शुरुआत
वर्ष 1978 में यादवों को संगठित कर महोत्सव की शुरुआत की गई। पूर्व मंत्री बीआर यादव के प्रयासों से महोत्सव को भव्य स्वरूप मिला। शुरुआत में मुश्किल से 60 छोटी-बड़ी मंडलियां शामिल हुई थीं। अब सभी छोटे-छोटे दल संगठित होकर बड़े रूप में सामने आए। आज लगगभ 100 दल अपनी प्रस्तुति देते हैं।

ये होते हैं मापदंड
पारंपरिक वेशभूषा, अनुशासन, प्रस्तुति, बाजा, ल_ संचालन, गुरुद चालन व झांकियों के आधार पर विजेता का चयन किया जाता है।

कृष्ण जैसा करते हैं श्रृंगार
नर्तक दल पारंपरिक वेशभूषा के श्रीकृष्ण जैसा श्रृंगार करते हैं। गड़वाबाजा, मोहरी, डफड़ा की धुन पर दोहे गाकर शुभाशीष देते हैं और योद्घा के जैसे शौर्य प्रदर्शन करते हैं।

मड़ई का होगा विमोचन
महोत्सव में समाज की पत्रिका मड़ई का विमोचन होगा। इसमें सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ ही संस्कृति पर शोधपरक रचनाएं होती हैं।

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