जगदलपुर। गत चुनाव के दौरान झीरम घाटी में कांग्रेश पार्टियों के नेताओं पर माओवादी हमले के बाद छत्तीसगढ़ सीमा से लगे सीमांध्र के दो नेताओं की हत्या जिसमें एक विधायक भी शामिल है फिर से एक बार झीरम घाटी कांड की याद को ताजा कर दिया। इन सबके बीच चुनाव की तैयारियां जारी है अब किसी भी प्रकार के प्रचार प्रसार के पूर्व पुलिस की सुरक्षा में ही बस्तर क्षेत्र में भी नेताओं को जाना पड़ेगा जिससे राजनीतिक दलों के हाथ पांव फूल गए हैं।
सीमांध्र के अरकू क्षेत्र के विधायक एवं पूर्व विधायक को सुरक्षा के दौरान माओवादियों ने मौत के घाट दिनदहाड़े उतार दिया। इस घटना के बाद फिर माओवादी प्रभावित बस्तर क्षेत्र में भी नेताओं की सुरक्षा ओं की समीक्षा की जा रही है। इस दौरान यह बातें भी कही जा रही है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा देने में सीमांध्र की पुलिस जो कि सक्षम मानी जाती है वह नाकाम ही साबित हुई तो क्या बस्तर में कैंपों में बंद पुलिस नेताओं को सुरक्षा देने के लिए मुफीद होगी।
ज्ञात हो कि चुनाव आयोग पूर्व से ही माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करने के निर्देश दिए हैं जिसके तहत गत दिवस संभाग स्तरीय बैठक का आयोजन बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक विवेकानंद सिन्हा ने लिया था फिर बस्तर जिले में पुलिस अधीक्षक के बजाय अनुविभागीय अधिकारी पुलिस स्तर के अधिकारियों द्वारा बैठक ली गई थी जिससे पुलिस की माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में किस प्रकार की तैयारी चल रही है उसको लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं अब होने लगी है।
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