रायपुर। क्षेत्र के वर्तमान सांसद श्री रमेश बैस के परिवार के द्वारा जमीन पर अतिक्रमण करने के कारण यहां भगवान राम के मंदिर में ताला लगा हुआ है। दक्षिण कोसल की राजधानी आरंग के समीप लगभग चार हजार की आबादी वाले गांव चंदखुरी को अयोध्या के राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या का जन्मस्थल माना जाता है।
126 तालाब वाले इस गांव में जलसेन नामक जलाशय के मध्य टापू में कौशल्या माता का मंदिर है, जहां कौशल्या की गोद में भगवान राम विराजमान हैं। विश्व में कौशल्या माता का यह एकमात्र मंदिर है।
माता कौशल्या का मायका होने के कारण इस गांव को भगवान राम का ननिहाल माना जाता है। गांव के मध्य में भगवान राम का मंदिर है जो पिछले 21 वर्षों से बंद है। इसकी वजह मंदिर मंदिर की वह बेशकीमती जमीन है ज जिसे प्राप्त करने के लिएअतिक्रमण कर मंदिर पर ताला लगा दिया गया है तथा भगवान की दैनिक पूजा अर्चना भी नहीं हो रही है।
मंदिर के प्रांगण में बने घर में निवास करने वाले शर्मा परिवार की मुखिया और गांव की सरपंच के मुताबिक मंदिर का निर्माण सैकड़ों वर्ष पूर्व कराया गया था। जब सीताराम स्वामी नायडू चंदखुरी गांव के मालगुजार थे तब उन्होंने वर्ष 1952 में आयुर्वेदिक डाक्टर के रूप में यहां आए नरसिंह प्रसाद उपाध्याय को मंदिर की सेवा में नियुक्त किया और मंदिर की लगभग 28 एकड़ जमीन की जिम्मेदारी सौंपी। इसके कुछ समय बाद नायडू की मृत्यु हो गई।
सरपंच इंदु शर्मा ने बताया कि जब मई वर्ष 1997 में उनके श्वसुर तथा मंदिर के पुजारी नरसिंह प्रसाद उपाध्याय की मृत्यु हुई तब अगस्त में यहां के प्रतिष्ठित बैस परिवार जो कि रायपुर के सांसद हैं ने इस मंदिर और जमीन पर दावा किया और मंदिर में कथित रूप से ताला लगा दिया। तब से यह मंदिर बंद है।
उन्होंने बताया कि तब से लेकर अब तक इस मंदिर को खोलने के लिए के लिए लड़ाई चल रही है। अवैध कब्जा करने वाले स्वयं पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वर्तमान सांसद का परिवार ही है इसलिए शासन प्रशासन की ओर से कोई भी कार्यवाही नहीं की जा रही है
सरपंच एवं आसपास के ग्रामीण ग्रामीण चाहते हैं कि मंदिर का द्वार खोल दिया जाए जिससे गांव के लोग दर्शन कर सकें। इधर मंदिर को लेकर बैस परिवार का अलग दावा है।
बैस परिवार के महेश बैस कहते हैं कि गांव में जब नायडू परिवार की मालगुजारी थी तब बैस परिवार ने उनकी पूरी ज़मीन खरीदी ली थी। जिसके साथ ही यह मंदिर भी बैस परिवार के हिस्से में आ गया। किंतु राजस्व अभिलेखों में अभी भी मंदिर की भूमि सरकार की भूमि है तथा मंदिर शासकीय भूमि पर स्थित है ऐसा प्रदर्शित होता है मंदिर लगभग तीन सौ साल पुराना है तथा मालगुज़ार नायडू ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1915 में कराया था।
बैस परिवार के सदस्य कहते हैं कि रख-रखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण हो गया और किसी अनहोनी से बचने के लिए मंदिर को बंद करना पड़ा। मंदिर की ज़मीन भगवान राम के नाम पर है।
राज्य के पुरातत्वविद डाक्टर हेमु यदु कहते हैं कि मंदिर के गुंबद को देखते हुए लगता है कि मंदिर का निर्माण 17 वीं से 18 वीं शताब्दी के मध्य में कराया गया था। इस मंदिर का निर्माण गांव में बने कौशल्या माता के मंदिर के बाद हुआ है।
कौशल्या माता के मंदिर की स्थापत्य कला की दृष्टि से इसके निर्माण का समय छठवीं शताब्दी माना जा सकता है। यदु कहते हैं कि छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोसल कहा जाता है और रामायण काल में दक्षिण कोसल के राजा भानुमंत का राज्य था।
जिनकी पुत्री भानुमति: कौशल्या: थी। दक्षिण कोसल की राजधानी आरंग नगरी थी तथा चंदखुरी का नाम पहले चंद्रपुरी था जहां माता कौशल्या का जन्म हुआ था। पुरातत्वविद कहते हैं कि चूंकि छत्तीसगढ़ श्रीराम का ननिहाल है इसलिए राम छत्तीसगढ़ वासियों के भांजे हुए। यही कारण है कि यहां के निवासी अपने भांजे में भगवान राम की छवि देखते हैं, तथा यहां भांजे का पैर छूने का रिवाज है।
मंदिर मंदिर को पुनः खोलने के लिए अब स्वयं मंदिरयह भी देखें : में स्थित भगवान राम की मूर्ति ने अपने उपासक अमर वर्मा के द्वारा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है।
उनके अधिवक्ता अखंड प्रताप पांडेय ने बताया कि उन्होंने इस प्रकरण में पंजीयक लोक न्यास के साथ ही पर्यटन एवं राजस्व विभागों को भी पक्षकार बनाया है, क्योंकि लोक न्यास अधिनियम के अंतर्गत शासन की यह जिम्मेदारी है कि शासकीय भूमि पर स्थित मठों एवं मंदिरों के समुचित रखरखाव का एवं प्रबंधन करें तथा मंदिर एवं उसकी भूमि कोअवैध अतिक्रमण से मुक्त करें साथ मंदिर ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है एवं निश्चित रूप से यह राज्य मैं पर्यटकों को भी आकर्षित करता रहा है ऐसे में शासन किया विधिक बाध्यता है कि वह मंदिर का संरक्षण एवं संवर्धन करें। इस प्रकरण की सुनवाई सोमवार को न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा की अदालत में होगी।
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