जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध 75 दिवसीय बस्तर दशहरा शनिवार को पाटजात्र विधान के साथ शुरू हो गया है। पाटजात्रा विधान, बस्तर दशहरे के लिए तैयार किए जाने वाले लकड़ी के रथ के निर्माण के लिए मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने ग्राम बिलौरी से लाई गई पहली लकड़ी का आज सुबह पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना कर, बकरे की बलि के साथ संपन्न हुआ। इस दौरान बड़े उमरगांव के कारीगर जिनके द्वारा रथ का निर्माण किया जाना है, वे भी मौजूद थे।
परंपरा के अनुसार रथनाई पैक बढ़ाई के साथ उन्हें उनके औजारों के साथ लेकर आते हैं और रथ बनाने के इन औजारों की पूजा भी इस दौरान की जाती है, जो संपन्न हुई। पूजा के दौरान मोंगरी मछली, अंडा और लाई का उपयोग किया किया गया, इस दौरान बकरे को अन्न खिलाने के बाद उसकी बलि दी गई। यह केंवट जाती के लोग परंपरागत तौर पर लाकर, पूजा के दौरान उपयोग करते हैं, जो इस वर्ष भी हुआ। पूजी गयी लकड़ी जिसे स्थानीय बोली में टूरलू खोटला कहा जाता है, से ख्याति प्राप्त हथौड़े बनाये जाते हैं और इसी के सहारे रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है।
श्वास की डोर थामे आदिम जनजातियां अपनी आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के छत्र को सैकड़ों वर्षों से विशालकाय लकड़ी से निर्मित रथ में विराजमान कर, रथ को पूरे शहर के परिक्रमा के रूप में खींचती हैं। भूतपूर्व चित्रकोट रियासत से लेकर बस्तर रियासत तक के राजकीय चालुक्य राजपरिवार की ईष्ट देवी और बस्तर अंचल के समस्त लोक जीवन की अधिशाष्ठत्री देवी मां दंतेश्वरी के प्रति श्रद्धाभक्ति की सामूहिक अभिव्यक्ति का पर्व बस्तर दशहरा है।
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