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अस्पताल में मिला ऐसा अपनापन कि डिस्चार्ज के बाद भी वापस नहीं जाना चाहती ये वृद्धा

चंद्रकांत पारगीर, बैकुंठपुर। वृद्धाआश्रम से इलाज के लिए आई महिला अब वापस जाने को तैयार नहीं है, दूसरी ओर महिला का पैर अभी तक ठीक नही हुआ है, लगातार उसके पैर से पानी निकलता रहता है। इधर, प्रबंधन ने उसे डिस्चार्ज कर दिया। परन्तु महिला है कि जिला अस्पताल छोड़ कर जाने को तैयार नहीं है उसका कहना है कि उसे वृद्धाआश्रम से यहां अच्छा लगता है, यहां के स्टाफ और लोगों से मिले प्यार ने उसे यही का बना दिया है। इधर, प्रभारी सीएस एसके गुप्ता का कहना है कि सरकारी नियमों को पालन करना होता है, वो अस्पताल के बाहर चली जाती है, ऐसे में कुछ हो जाएगा तो हम क्या जवाब देंगे। वहीं इलाज कर रहे सेवा निवृत संविदा चिकित्सक डॉ. शेंडे का कहना है कि रामबाई को यहां अच्छा लग रहा है, उसकी भावना को समझा जाना बेहद जरूरी है, उम्र के इस पडाव में उसे यहां अपनापन मिला, उसकी हालत में काफी सुधार आया है, वो अब चल फिर रही है।


उम्र के अंतिम पडाव में पहुंचें वृद्धजनों को वृद्धाआश्रम में रखकर परिवार के लोग भूल जाते है, और वृद्ध अपने हाल पर जीने को मजबूर रहते हैं। ऐसे में उन्हें थोडा प्यार और अपनापन मिलता है तो उसे ही वो अपना घर मान लेते हैं। ऐसा ही वाक्या जिला अस्पताल में देखने को मिला, चिरमिरी स्थित वृद्धाआश्रम में रहने वाली रामबाई को कई तरह की बीमारियों के कारण पहले बडा बाजार चिरमिरी मेे इलाज हुआ उसे वहां से जिला अस्पताल रेफर कर दिया है। ड्यूटी में तैनात सेवानिवृत संविदा चिकित्सक डॉ. शेेडे ने रामबाई का इलाज शुरू किया। संवेदनशील चिकित्सक खुद अपने बच्चों से दूर रह कर यहां लोगों को अपनी सेवा दे रहे हैं।

उन्होंने महिला के दर्द को भांप लिया और उसका इलाज शुरू किया। धीरे-धीरे उसकी हालत सुधरती गई और अब वो चल फिर सकती है। हालांकि उसके एक पैर में काफी सूजन है जिसमें से लगातार पानी रिसता रहता है। इधर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया, वृद्धाआश्रम से आने वाले अधिकारी उसे ले जाने की कई कोशिश भी किए, फिर उन्होंने जिला प्रशासन को उसके हाल चाल की जानकारी दी, उसे वहीं रखने का दबाव बना, तो सीएमएचओ ने सीएस को फोन नहीं लगा, अस्पताल के सलाहकार को उसे नहीं रखने को कॉल लगाया परन्तु बात नहीं बनी, जिसके बाद डिप्टी कलेक्टर ने सीएस को उसे वहीं रखने को कहा। इधर, जैसे जैसे रामबाई ठीक हुई वो अस्पताल में अपना बेड छोड थोडा टहलने लगी, धीरे धीरे वो बाहर तक घूमने लगी, इधर प्रबंधन को उसका इधर उधर घूमना रास नहीं आ रहा है, काफी देर तक अस्पताल की बेड पर ना आने पर उसकी खोज करने पुलिस को जानकारी भेजी जानी थी कि वो अपने बैड पर आ गयी। डॉ. शेंडे ने उसे ना घूमने की सलाह भी दे रखी है। रामबाई बताती है कि उसकी एक ही लड़की है, और उसका कोई नहीं है, वो भी उसे वृद्धाआश्रम छोड़ चली गयी, आश्रम में एक दो वृद्ध है परन्तु वहां के सूनापन ने उन्हें बीमार कर दिया है, अब यहां उन्हें अच्छा लग रहा है।


क्या कहती है सरकार की वृद्धजन नीति
भारत सरकार ने 1999 में बुजुर्गों से संबंधित राष्ट्रीय नीति बनायी, जिसमें सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया। इस राष्ट्रीय नीति की मुख्य बातें ये है कि वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और पौष्टिकता, आश्रय, जानकारी संबंधी आवश्यकताओं, उचित रियायतों आदि में सहायता प्रदान करना साथ ही वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा जैसे उनके कानूनी अधिकारों की रक्षा करने और इन्हें मजबूत बनाने पर विशेष ध्यान देना और सरकार ने अभिभावकों और वरिष्ठ नागरिकों के गुजारे और कल्याण से संबंधित कानून, 2007 में कानून भी बनाया है।  इस कानून में माता-पिता, दादा-दादी को उनके बच्चों से आवश्यकतानुसार गुजारा भत्ता दिलवाने की व्यवस्था है। कानून में वरिष्ठ नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा, बेहतर चिकित्सा सुविधाओं और हर जिले में वृद्ध सदनों की स्थापना जैसी व्यवस्थाएं हैं। परन्तु जानकारी के अभाव में कोई भी इसका लाभ नही ले पाता है, वृद्धजन यहां वहां भटकते रहते हैं।

 

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