पटना हाईकोर्ट ने पीपुल्स फ्रंट आफ इंडिया (Popular Front of India) और सिमी (Students Islamic Movement of India-SIMI) के पांच गुर्गों की जमानत याचिका खारिज कर दी है। इन सभी पर वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के पटना दौरे के दौरान गड़बड़ी फैलाने और संविधान को पलट कर इस्लामी कानून (Islamic law) स्थापित कर देश में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का आरोप है। दोनों को गृह मंत्रालय (home Ministry) ने प्रतिबंधित संगठन माना है। वहीं कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने संबंधी एनआईए कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
बिहार में 2022 में पीएम मोदी के खिलाफ साजिश रचने वाले पीएफआई और सिमी के पांच गुर्गे को पटना हाईकोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। पटना हाईकोर्ट ने सभी की जमानत याचिका खारिज कर दी है।
जज विपुल एम. पंचोली एवं न्यायाधीश रमेश चंद मालवीय की खंडपीठ ने मंजर आलम एवं चार अन्य आरोपितों की आपराधिक अपीलों को खारिज कर दिया। वे सभी प्रतिबंधित संगठन पीपुल्स फ्रंट आफ इंडिया (PFI) और स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (SIMI) के सदस्य हैं। पटना हाईकोर्ट के इस निर्णय से अब इन दोनों संगठनों की मुश्किलें बिहार में बढ़ने वाली है।
पटना हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि PFI और सिमी एक जेहादी संगठन है। यह देश में इस्लामिक राज लाना चाहता है। खंडपीठ ने पाया कि आरोपितों के विरुद्ध राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को इस षड्यंत्र में पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं। एजेंसी ने कई संवेदनशील साक्ष्यों का हवाला देते हुए उस षड्यंत्र के दो मुख्य आरोपितों मोहम्मद जलालुद्दीन और अतहर परवेज के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया था। हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपितों द्वारा उक्त षड्यंत्रों को अंजाम देने के लिए उपयोग किए गए मोबाइल फोन व डिजिटल उपकरणों की जांच एजेंसी ने बरामदगी के बाद सरकारी तकनीकी लैब में की थी। अनुसंधान के दौरान संवेदनशील डेटा प्राप्त किया गया, जिसमें हजारों वीडियो मिले हैं।
बता दें कि प्रधानमंत्री के भावी दौरे में गड़बड़ी के षड्यंत्र की सूचना मिलने के बाद 11 जुलाई, 2022 को पटना पुलिस ने फुलवारीशरीफ में मो. जलालुद्दीन के घर पर छापेमारी कर उसके किरायेदार ताहिर परवेज से कई संवेदनशील दस्तावेज और उपकरण बरामद किए थे। देश में सांप्रदायिक तनाव और देश की अखंडता के विरुद्ध षड्यंत्र की घटना पुलिस में दर्ज की गई थी।इस मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने 22 जुलाई, 2022 को जांच कराने का निर्णय लिया था। गिरफ्तार जलालुद्दीन और अतहर ने अपनी स्वीकारोक्ति रिपोर्ट में षड्यंत्र में सम्मिलित अपने दूसरे साथियों का भी नाम लिया था। इस पूरे मामले में केंद्र सरकार के वकील केएन सिंह ने अग्रिम जमानत का कड़ा विरोध किया।
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