जगदलपुर। संभागीय मुख्यालय के करीब बहती इन्द्रावती नदी के उस पार बसे आसना ग्राम मे स्थित नर्सरी के सामने संरक्षित साल वनों के बीच गत 13 वर्ष पूर्व सल्फी वृक्षों की संख्या बढ़ाने के लिए करीब 5 हेक्टेयर क्षेत्र में 12 हजार पौधे लगाये गये थे और इन पौधों को वृक्ष बनाने की जिम्मेदारी आसना आदिवासी महिला समिति को दी गई थी। लेकिन वर्तमान में बस्तर बीयर के नाम से प्रसिद्ध सल्फी के हजारों पौधों के स्थान पर केवल सल्फी के 12 वृक्ष ही बचे हुये हैं। इस संबंध में वन विभाग की कार्यप्रणाली निरंतर जांच के दायरे में आ रही है। साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि वन विभाग बस्तर के जंगलों को बचाने तथा नये वृक्षों को ऊगाने में फिसड्डी साबित हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि यह उपक्रम आसना में 13 से 14 वर्ष पूर्व सल्फी वृक्षों की लगातार बढ़ रही उपयोगिता तथा स्थानीय ग्रामीणों को इससे मिलने वाली आर्थिक मदद को देखते हुए किया गया था। इसके अंतर्गत इस सल्फी रोपण क्षेत्र में 12 हजार पौधें लगाये गये थे। इसके बाद वन विभाग ने इनके संरक्षण व संवर्धन के प्रति आंख मूंद ली है तथा आसना की उक्त समिति को संरक्षण का कार्यभार देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। वर्तमान में इस स्थल पर आज केवल गिनती के वृक्ष ही सल्फी के दिखाई पड़ते हैं और इस सल्फी रोपण के प्रति न तो कर्मचारियों को और न ही विभागीय स्तर पर कोई जानकारी प्राप्त होती है। यह भी एक विशेष तथ्य है कि बस्तर में मिलने वाला सल्फी वृक्ष से मिलने वाले रस को बीयर के रूप में देखा जाता है। इस रस को पीने से हल्का नशा व गर्मी में शीतलता का आभास होता है। इसके इन गुणों को देखते हुए न केवल ग्रामीण वरन शहर के निवासी भी चखने के लिये लालायित रहते हैं। जिन ग्रामीण परिवारों के पास यह वृक्ष है वह एक सीजन में हजारों रूपयों की कमाई अपने उस परिवार को प्रदान कर देता है। जहां पर वह लगा हुआ है। इस प्रकार सल्फी के रस से स्थानीय ग्रामीणों को आर्थिक मदद भी प्राप्त हो जाती है। कुछ कारणों से इन वृक्षों का बस्तर में अभाव सा होता जा रहा है। इसी को देखते हुए उक्त सल्फी कुंज आसना में बनाया गया था।
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