भिलाई में मोपेड सवार बच्चा मांझे से गला कटने के कारण गंभीर स्थिति में है। इस हादसे के बाद रायपुर और दुर्ग समेत कई जिलों में कांच से रंगे हुए चायनीज मांझे पर प्रशासन ने बैन लगाकर जांच की घोषणा कर दी है, लेकिन शुक्रवार को किसी तरह की जांच नहीं की गई।
मकर संक्रांति के कारण जिन मोहल्लों में ये परंपरागत तौर पर बिकते हैं, वहां तो खुलेआम कांच से रंगे मांझे की चकरियां बिकती रहीं।
यही नहीं, खिलौनों की दुकानों में भी एक दिन के कारोबार के हिसाब से मांझा बिका, वह भी चीनी मांझे के नाम पर। प्रशासन या नगर निगम ने किसी तरह की जांच नहीं की, यहां तक कि भास्कर के साथ बातचीत में कुछ व्यापारियों ने भी ऐसे किसी बैन को लेकर अनभिज्ञता जता दी। सिर्फ कुछ दुकानों में ही लिखा मिला कि चाइनीज मांझा बैन है।
एक खास बात यह भी सामने आई कि मांझा बेचने वालों ने कांच से रंगे हुए मांझे को चाइनीज नहीं बल्कि लोकल बताया। उन्होंने कहा कि बड़ी-छोटी चकरियों में लपेटा गया महीन लेकिन बेहद तेज मांझा चाइनीज जैसा दिखता है, बनता यहीं है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इसे चाइनीज मांझे की तरह ही बनाया गया है, सिर्फ बैन से बचने के लिए ही देसी का नाम दिया गया है।
इसी मांझे से पिछले 15 दिन से राजधानी का बाजार सजा है। भास्कर ने शुक्रवार को मांझों की जांच के लिए बाजार का सर्वे किया। राजधानी में सबसे ज्यादा दुकानें सदरबाजार, बूढ़ापारा, नयापारा, तेलीपारा और रहमानिया चौक में लगी हैं।
कई खिलौनों वालों ने तो कई जनरल स्टोर वालों ने भी मकर संक्रांति को देखते हुए दुकानों में पतंगों के साथ मांझे का स्टॉक रख लिया है। शहर में जहां भी पतंग-मांझे की दुकानें हैं, वहां लगभग एक जैसा ही स्टॉक है। इस मांझे को छूने से पता चल रहा है कि उसमें कांच का कितना चूरा मिला है। दरअसल यही चूरा घातक है।
यहां का मांझा मजबूत धागे में, दुकानदार लोकल बताते हैं, पर दिखता है चायनीज
आमतौर पर देशी मांझे मोटे धागे को रंगकर बनाए जाते हैं। चायनीज धागे पतले हाेते हैं, पर यह भी खासे मजबूत रहते हैं। दुकानदार कहते हैं कि मांझा लोकल है। भास्कर ने खुद कुछ दुकानों में धागे की मजबूती चेक की, तो चाइनीज जैसे मजबूत दिखे।
दरअसल पतंगबाजी के शौकीन जितनी मजबूत और धारदार मांझे की तलाश करते हैं, ताकि वे ज्यादा ज्यादा पतंगे काट सकें। मकर संक्रांति में कई जगह पतंगबाजी प्रतियोगिता होती है और विजेता को पुरस्कार मिलता है। इसीलिए तेज से तेज मांझा खरीदने की होड़ मची रहती है।
गुजरात और यूपी से भी आ रहा मांझा
कारोबारियों का कहना है इस बार कच्चा माल महंगा होने से पतंग डोर यानी मांझे की कीमतों में 35 से 40 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। बाजार में अहमदाबाद, कानपुर और बरेली यूपी से मांझा और पतंग मंगवाई जा रही हैं। मांझा चरखे की कीमत 50 रुपए से ढाई सौ रुपए तक है। दुकानदारों ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से पतंगों के प्रति लोगों का क्रेज बढ़ गया है।
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