इलाज में लापरवाही, नियुक्ति से इतर सेवा, स्वास्थ्य विभाग के लिए आम बात है। लेकिन अपने विभाग की महिला कर्मी से भेदभाव का एक मामला सोमवार को संज्ञान में आया है। 6 महीने की गर्भवती होने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की महिला कर्मी का नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थानांतरण कर दिया है।
हद तो यह कि खुशबू चतुर्वेदी नाम की इस महिला ने अपने मेडिकल स्थिति की लिखित जानकारी स्थानांतरण के बाद जिले से लेकर रायपुर तक के सभी अधिकारियों को दे दी थी। जबकि पुलिस महकमे में पत्नी के गर्भवती होने पर आरक्षक पति के स्थानांतरण पर पर हाई कोर्ट से रोक लगा दी है।
स्वास्थ्य विभाग में गर्भवती महिला कर्मी का स्थानांतरण तब भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कर दिया गया है, जबकि 2009 में हुई नक्सली घटना में ही उसके पिता उमेश गुप्ता की मौत हो चुकी है। पिता की मौत के एक साल बाद 2010 में महिला कर्मी को दुर्ग में अनुकंपा नियुक्ति मिली।
करीब 12 वर्ष तक की सेवा के बाद अब उसे छुरिया, राजनांदगांव स्थानांतरण कर दिया गया है। खुशबू, दुर्ग सीएमएचओ कार्यालय के स्थापना सेक्शन में सहायक ग्रेड-3 के पद पर पदस्थ रही हैं। 9 महीने का गर्भ होने के कारण स्थानांतरण आदेश के सम्मान में नई जगह अब तक ज्वाइन भी नहीं कर पाई हैं।
दो अन्य मामलों में भी महिला कर्मियों का तबादला आदेश जारी कर दिया गया
बीपी व शुगर जांच करना सीख नौकरी चलाईं:
दशोदा मानिकपुरी सीएमएचओ कार्यालय के स्थापना सेक्शन में सहायक ग्रेड-3 पर पदस्थ हैं। प्रशासनिक स्थानांतरण में उन्हें भिलाई-3 भेज दिया गया। वहां बाबू का कोई काम नहीं होने से नौकरी चलाने बीपी-शुगर जांचना सीखना पड़ा। डॉक्टरों से सीखने के बाद जैसे-तैसे नौकरी चलाती रहीं। अटैचमेंट रद्द हुआ तो सीएमएचओ कार्यालय पहुंची हैं। उनके पति लंबे समय से बीमार व बेड पर हैं।
सीनियर महिला बाबू ने नौकरी छोड़ने पत्र लिखा:
सीएमएचओ कार्यालय के स्थापना सेक्शन में पदस्थ सहायक ग्रेड-2 पीबी कुरैशी ने नौकरी छोड़ने पत्र लिखा है। परिजन उनके इस निर्णय को हालांकि पारिवारिक जिम्मेदारियां बताते हैं, लेकिन असल वजह भेदभाव ही बताया जा रहा है। पहले यह स्थापना सेक्शन में थीं, वहां से नर्सिंग होम एक्ट और पुन: स्थापना सेक्शन में भेज दिया गया था। विभाग ने अभी हालांकि उनके पत्र को स्वीकृति नहीं दी है।
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