बाघ के पंजों से बुरी तरह घायल और खून से लथपथ इस बहादुर लड़की ने घर के भीतर आने के बाद क्या किया? अपना मोबाइल फोन निकालकर अपनी और घायल मां की सेल्फी ली, क्योंकि बाघ अब भी बाहर था, सुरक्षा की गारंटी नहीं थी, लिहाजा वो अपनी हालत को कैमरे में सुरक्षित कर लेना चाहती थी। 21 साल की कॉमर्स ग्रैजुएट रुपाली मेश्राम एक दुबली-पतली सी ग्रामीण लड़की हैं। साधारण परिवार की इस लड़की के सिर पर, दोनों हाथ-पांव और कमर पर घाव के निशान दिखते हैं। सिर और कमर के घाव गहरे थे लिहाजा वहां टांके आए हैं। नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के अहाते में वह अपना डिस्चार्ज कार्ड दिखाती हैं जिस पर घावों की वजह साफ लिखी है । जंगली पशु बाघ का हमला। हालांकि असली कहानी है कि किस तरह से उसने और उसकी मां ने बाघ से भिड़कर खुद की जान बचाई, लेकिन फिर भी गांव लौटने का हौसला बाकी है। पूर्वी विदर्भ में भंडारा जिले के नागझिरा इलाके में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी (वन्य जीव अभयारण्य) से सटे गांव में रुपाली का छोटा-सा घर है। उसकी मां जीजाबाई और बड़ा भाई वन विभाग के लिए दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। उसके अलावा परिवार ने बकरियां पाल रखी हैं ताकि कुछ और रुपए बच पाएं। 24 मार्च की रात जब बकरियों के चिल्लाने की आवाजें आईं तो नींद से उठकर रुपाली ने घर का दरवाजा खोल दिया। आंगन में बंधी बकरी खून से लथपथ थी और उसके करीब हल्की रोशनी में दिखती बाघ की छाया। बाघ को बकरी से दूर करने के इरादे से रुपाली ने एक लकड़ी उठाकर बाघ पर वार किया।
वो बताती हैं कि लकड़ी की मार पड़ते ही बाघ ने उस पर धावा बोला दिया। उस के पंजे की मार से मेरे सिर से खून बहने लगा, लेकिन मैं फिर भी उस पर लकड़ी चलाती रही। मैंने चीख कर मां को बाघ के बारे में बताया। रुपाली की माँ जीजाबाई कहती है कि जब मैं रुपाली की चीख सुनकर बाहर आई तो उसके कपड़े खून से लथपथ थे। मुझे लगा कि अब वो मर जायेगी। उसके सामने बाघ था। मैंने भी लकड़ी उठाकर उस पर दो बार वार किए। उसने मेरे दाहिनी आंख के पास पंजे से वार किया, लेकिन, मैं जैसे-तैसे रुपाली को घर के भीतर लाने में सफल रही। हमने दरवाजा भी बंद कर दिया। छोटी-सी बस्ती होने के चलते घर दूर-दूर बने हैं, शायद इसलिए हमारी चीखें किसी को सुनाई ना दी हो।
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