क्या औद्योगिक प्रदूषण की वजह से मानसूनी बादल छत्तीसगढ़ से रूठ गए हैं? मौसम विज्ञानी तो कुछ ऐसी ही आशंका जता रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारी धूल कणों की वजह से बादलों में पानी की भारी और बड़ी बूंद नहीं बन पा रही है। इसकी वजह से कुछ विशेष क्षेत्रों में कम बरसात हुई है। अगर इन क्षेत्रों में पानी की भारी बूंदों वाले बादल आए तभी यहां अच्छी बरसात होगी।
इसको समझने के लिए पहले समझना होगा कि बरसात होती कैसे है। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक मैदानों में भीषण गर्मी की वजह से हवा गर्म होकर ऊपर की ओर उठती है। यह कन्वेक्शन होता है। यहीं अगर उसे नमी मिल जाए तो बादल बनता है। इसमें पानी गैस के रूप में होता है। विभिन्न सतहों पर बह रही हवा इसे ऊंचे उठाकर ले जाती है। इसी बादल में ठंडा होने पर गैस के रूप में इकट्ठा पानी द्रव में बदल जाता है। इसकी बूंदें एक सीमा से बड़ी हो जाती हैं तो बादल इसे संभाल नहीं पाता और बरस पड़ता है। इस तरह बरसात होती है। ऐसा तब होता है जब तापमान, हवा की दिशा, बादलों की ऊंचाई जैसे कई तत्व एक साथ मिलें।
मौसम विज्ञानी एच.पी. चंद्रा का कहना है, औद्योगिक क्षेत्रों और उसके आसपास की हवा में धूल के भारी कण मौजूद हैं। ये कण दो तरह के हैं। पहले वे जिसे विज्ञान की भाषा में द्रव स्नेही अथवा Fluid-loving colloidsकहते हैं। दूसरे वे होते हैं जिन्हें द्रव विरोधी अथवा anti-fluid colloids कहलाते हैं। अधिकतर औद्योगिक प्रदूषक द्रव विरोधी हैं। यानी वे पानी अथवा हवा में घुलते नहीं है। ये हवा के साथ ऊपर उठते हुए बादलों में जाते हैं। इनकी वजह से बादलों में संघनन प्रभावित होता है। पानी की बड़ी बूंदे नहीं बन पाती। छोटी बूंदों से केवल हल्की बरसात होती है। अगर इन क्षेत्रों में आने वाले बादल पहले से ही भारी बूंदों के साथ आएं तभी इन द्रव विरोधी कणों का जाल तोड़कर बरस पाएंगे।
इन्हीं की वजह से कम समय में अधिक पानी बरस रहा है
मौसम विज्ञानी एच.पी. चंद्रा का कहना है, भारी बूंदों वाले बादल भी अगर बरसात करते हैं तो वह कम समय के लिए होगा। यानी कुछ घंटाें में ही 24 घंटों का कोटा पूरा हो जाता है।यह औद्योगिक धूल कणों का ही असर है कि बरसात के दिन कम होते जा रहे हैं, लेकिन किन्हीं-किन्हीं क्षेत्रों में पानी अधिक गिर रहा है। इसकी वजह से जन-जीवन प्रभावित है।
अभी रायपुर सहित 13 जिलों में पानी की कमी
छत्तीसगढ़ में मानसून की सक्रियता के बाद भी 13 जिले पानी की कमी से जूझ रहे हैं। इसमें रायपुर जिला भी शामिल है। यहां 62% कम बरसात हुई है। रायपुर में एक जून से 6 जुलाई तक सामान्य तौर पर 245.4 मिलीमीटर बरसात हो जाती है। इस बार यहां केवल 93% पानी बरसा है। जशपुर जिले में 68% कम बरसात हुई है। 347.6 मिमी की तुलना में 110 मिमी बरसात हो पाई है। रायगढ़ और सरगुजा भी बरसात की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं बलरामपुर, बस्तर, बेमेतरा, दंतेवाड़ा, दुर्ग, कांकेर, कोण्डागांव, कोरिया, सुकमा और सूरजपुर में भी कम पानी बरसा है।
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