छत्तीसगढ़ में ग्रामीण इलाकों में तंबाकू सेवन करनेवाले पुरुषों की संख्या 46 प्रतिशत हो गई है, अर्थात लगभग आधे पुरुष किसी न किसी रूप में तंबाकू उत्पाद का सेवन कर रहे हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवीं रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में तंबाकू सेवन करनेवाली महिलाओं की संख्या भी 19.6 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
इनमें ज्यादातर मामले गुड़ाखू के सेवन से जुड़े हैं। प्रदेश के एकमात्र रीजनल कैंसर संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक मुंह के कैंसर के अधिकांश मामले गुड़ाखू की वजह से आ रहे हैं। इधर, राष्ट्रीय स्तर पर हुए एक अन्य रिसर्च ने तंबाकू के मामले में पहली बार इसके हानिकारक कचरे पर फोकस करते हुए खुलासा किया कि देश में 170331 और छत्तीसगढ़ में 4567 टन कचरा निकल रहा है।
से नष्ट करने का प्रदेश में सिस्टम नहीं है, इसलिए यह पर्यावरण के लिए भी गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। यही नहीं, इस कचरे में जो तत्व मिले हुए हैं, अगर तंबाकू प्रोडक्ट में उनका इस्तेमाल नहीं होता तो बचने वाला एल्यूमिनियम, प्लास्टिक और पेपर दूसरे इस्तेमाल में आ सकते थे।
छत्तीसगढ़ में ओरल कैंसर यानी मुंह और गले के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। राज्य के सबसे बड़े कैंसर संस्थान रायपुर के आंकड़े बताते हैं 15 से 44 साल की उम्र में बीते पांच साल में तेजी से मुंह और गले का कैंसर बढ़ा है। इसमें भी गुड़ाखू करने वालों की संख्या बहुत अधिक है।
मुंह के कैंसर वाले मरीजों के सर्वे में यह बात सामने आई कि ज्यादातर मरीज गुड़ाखू का दिन में कई बार सेवन करनेवाले हैं, और वह ज्यादा खतरे में हैं जो गुड़ाखू करने के बाद सो जाते हैं और ऐसा करीब दस साल से करते आ रहे हैं। करीब 20 साल से छत्तीसगढ़ में कैंसर के मरीजों के इलाज में लगे प्रदेश के एकमात्र कैंसर रीजनल सेंटर के डायरेक्टर डा. विवेक चौधरी के अनुसार पिछले पांच-सात में युवाओं में मुंह और गले के कैंसर के मामले बढ़े हैं और ज्यादातर का कारण तंबाकू का सेवन ही है।
कचरा भी घातक – इको सिस्टम के लिए खतरा बन रहा तंबाकू का कचरा
छत्तीसगढ़ में 39.1 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू और इससे बने उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं। बीड़ी, सिगरेट पीकर इसके आखिरी का हिस्सा और गुटका खाकर पाउच कहीं भी फेंक रहे हैं और आश्चर्यजनक है कि यही फेंका हुआ टुकड़ा, जिसके बारे में कोई नहीं सोचता, अकेले पूरे प्रदेश में एक साल में 4567.36 टन और देश में 170331 टन कचरा पैदा कर रहा है।
जिससे यह पर्यावरण के लिए भी खतरा बन रहा है। इसमें से सिगरेट के टोटे यानी फिल्टर का हिस्सा तो खतरनाक है ही, फेंके गए तंबाकू उत्पादों में जो मटेरियल इस्तेमाल हुआ है, अगर वह नहीं हुआ होता तो कितना लाभदायक रहता, इसे जोधपुर एम्स और द यूनियन साउथ एशिया ने लंबे रिसर्च के बाद साबित किया है। इस रिसर्च से छत्तीसगढ़ ने अपने काम का हिस्सा अलग निकाला है।
जिसके मुताबिक प्रदेश में सिगरेट के पैकेट से निकलनेवाली चमकीली पन्नी (फॉइल वेस्ट) इतनी निकल रही है कि इसका एल्यूमिनियम एक छोटा विमान बनाने के लिए काफी है। इसी तरह, गुटखा तथा अन्य तंबाकू उत्पादों का प्लास्टिक अगर पाउच वगैरह बनाने में इस्तेमाल नहीं होता तो इससे 20 लाख से अधिक प्लास्टिक बाल्टियां बन सकती हैं।
यही नहीं, सिगरेट-गुटखे से निकलनेवाले पेपर वेस्ट से सिर्फ छत्तीसगढ़ में 2.50 करोड़ नोटबुक बनाई जा सकती थीं। यह शोध 17 राज्यों के 72 जिलों को शामिल किया गया है, जिसमें छत्तीसगढ़ के जिले भी हैं। अपनी तरह की यह पहली रिपोर्ट है जो यह बता रही है कि यह कचरा हमारे पर्यावरण के लिए कितना नुकसानदायक है, क्योंकि यह कचरा आसानी से नष्ट नहीं होता।
जलाने पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, तो वहीं जमीन में पड़े रहने से रसायन उत्सर्जित करता है। आज 31 मई है, विश्व तंबाकू निषेध दिवस है। इस बार की थीम ‘पर्यावरण के लिए खतरनाक है तंबाकू’। द यूनियन के सीनियर टेक्नीकल एडवाइजर अमित यादव कहते हैं कि हम अगर यह सोचना शुरू कर दें कि हम किस रूप में पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैं तो शायद हम नुकसान न पहुंचाएं। इस शोध का उद्देश्य मौजूदा खतरे को समय रहते उजागर करना है।
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