इलाहबाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड लागू करने को लेकर विचार करने को कहा है. हाई कोर्ट ने कहा है कि अब ये देश की जरूरत बन गई है.
बता दें कि संविधान की धारा 44 के तहत कहा गया है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के विवाह को जिला प्राधिकरण द्वारा जांच के बिना पंजीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें इस उद्देश्य के लिए अपने साथी के धर्म में परिवर्तित होने से पहले जिला मजिस्ट्रेट से अनिवार्य मंजूरी नहीं मिली थी.
हालांकि, याचिकाकर्ताओं के वकील ने जोर देकर कहा कि नागरिकों को अपने साथी और धर्म को चुनने का अधिकार है और धर्म परिवर्तन अपनी इच्छा से हुआ.
बता दें कि कि इस साल जुलाई में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी की थी और कहा था कि सरकार को समान क़ानून के दिशा में सोचना चाहिए.
डॉ अंबेडकर देश की आधी आबादी जो महिलायें हैं, उनको उनके अधिकार देने के लिए ये बिल लाना चाहते थे, लेकिन फिर उन्होंने ने ही कहा कि इस पर एक राय बनाकर उचित समय पर इसे लागू किया जाना चाहिए.
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