मांग बढ़ने और मंडियों में तिलहनों की आवक घटने से देशभर के तेल-तिलहन बाजारों में शनिवार को सरसों तेल-तिलहन, सोयाबीन दाना एवं लूज (तिलहन), बिनौला, मूंगफली तेल तिलहन के भाव सुधार के साथ बंद हुए जबकि दाम महंगा होने की वजह से मांग प्रभावित होने के कारण सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतें पूर्वस्तर पर बंद हुई. बाकी तेल-तिलहनों के भाव भी पूर्वस्तर पर बने रहे.
बाजार सूत्रों ने कहा कि देश में खुदरा कारोबारियों की सरसों की मांग बढ़ने से इसके तेल तिलहनों के भाव में सुधार आया. वहीं विदेशी बाजारों में पोल्ट्री कंपनियों की सोयाबीन के तेल रहित खल (डीओसी) की मांग बढ़ने से सोयाबीन दाना एवं लूज के भाव सुधार दर्शाते बंद हुए. उन्होंने कहा कि सोयाबीन का दाम नई फसल आने के बाद आधे रह गए हैं और किसान कम भाव पर बेचने को राजी नहीं है इसलिए मंडियों में सोयाबीन की आवक कम हुई है.
उन्होंने कहा कि मूंगफली तेल कीमतों में सुधार से बिनोला के दाम में भी सुधार आया. दूसरी ओर, जाड़े में भारी तेल (पामतेल) की मांग कम होने के साथ इन तेलों के मुकाबले सूरजमुखी और सोयाबीन रिफाइंड के दाम सस्ता होने से सीपीओ और पामोलीन तेलों के भाव पूर्वस्तर पर बंद हुए.
घटे हुए दाम का उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा लाभ
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि तेल तिलहन कारोबार के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सूरजमुखी तेल का भाव आयातित पामोलीन से सस्ता है. उन्होंने कहा कि सूरजमुखी का तेल आज से छह महीने पहले सरसों तेल से 40 रुपए प्रति किलो ज्यादा था और पामोलीन से 55-60 रुपए प्रति किलो महंगा था. सूरजमुखी के आयात पर लगने वाला शुल्क 46-47 रुपए प्रति किलो था, वह आयात शुल्क में कमी किए जाने के बाद घटकर सात रुपए प्रति किलो रह गया है.
देश में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों में सूरजमुखी तेल की खपत वैसे ही होती है, जैसे उत्तर भारत में सरसों की. सरकार को यह देखना चाहिए कि सूरजमुखी के दाम कम होने के बावजूद उपभोक्ताओं को यह सस्ते में क्यों उपलब्ध नहीं है.
उन्होंने कहा कि गुजरात में मूंगफली की नई फसल आने के बाद पिछले लगभग दो महीने में मूंगफली तेल के दाम में 25-30 रुपए लीटर की कमी आई है लेकिन यहां भी इस गिरावट का फायदा उपभोक्ताओं को क्यों नहीं दिया जा रहा, इसकी सरकार को जांच करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मूंगफली तेल का अधिकतम खुदरा भाव 150-155 रुपए लीटर होना चाहिए, पर खबरें हैं कि उपभोक्ताओं को यह काफी महंगे दाम पर बेचे जा रहे हैं.
पीडीएस के माध्यम से तेल उपलब्ध कराने पर विचार करे सरकार
सूत्रों ने कहा कि सामान्य दिनों में खाद्य तेलों में सरसों का योगदान लगभग 11 प्रतिशत होता है, जो फिलहाल घटकर 5-6 प्रतिशत रह गया है. उन्होंने कहा कि मार्च में सरसों की नई फसल आने के बाद ही सरसों के दाम से राहत मिल सकती है और उम्मीद है कि पैदावार पर्याप्त बढ़ने के कारण यह सोयाबीन से 10 रुपए किलो नीचे बिके.
उन्होंने कहा कि सलोनी शम्साबाद ने शनिवार को सरसों का भाव 9,100 रुपए से बढ़ाकर 9,200 रुपए क्विन्टल कर दिया जबकि जयपुर में सरसों का भाव अधिभार समेत 8,770-8,795 रुपए क्विन्टल कर दिया गया है. देश भर की प्रमुख मंडियों में सरसों की आवक 1,55,000 बोरी से घटकर 1,30 लाख बोरी रह गई. इसी वजह से सरसों तेल तिलहन कीमतों में सुधार है.
सूत्रों ने कहा कि उत्तर प्रदेश की तरह ही सरकार को बिहार, उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से खाद्य तेल उपलब्ध कराने पर विचार करना चाहिए.
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