भाईदूज (Bhai Dooj) का त्यौहार भाई और बहन के स्नेह का प्रतीक है. दिवाली महापर्व के पांचवे एवं अंतिम दिन यह त्यौहार मनाया जाता है. इस त्यौहार को मनाने को लेकर मान्यता है कि इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से बहनों द्वारा अपने भाईका तिलक (Tilak) किया जाना श्रेष्ठ होता है. भाईदूज पर पूजन की सामग्री के साथ ही पूजा की सही विधि अपनाना भी जरूरी होता है. आज के दिन शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat) को ध्यान में रख सही पूजा विधि अपनाकर भाई को तिलक लगाना चाहिए.
भाईदूज की पूजा विधि
भाईदूज का दिन भाईओं और बहनों के लिए बेहद खास होता है. इस दिन बहनों को सूर्योदय से पहले उठकर अपने ईस्ट और भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए. इसके बाद पिसे चावल से चौक बनाकर उस चौक पर भाई को बैठाना चाहिए. भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाने के बाद उस पर थोड़ा सा सिंदूर लगाना चाहिए, फिर फूल, पैसा, सुपारी हाथों में रखकर उस पर पानी छोड़ना चाहिए. इसक बाद भाई के माथे पर तिलक करना चाहिए. तिलक लगाने के बाद भाई की आरती उतारकर कलावा बांधना चाहिए. इसके बाद भाई का मुंह मीठा कराना चाहिए. इसके बाद भाई को भोजन कराएं और उसे भोजन के बाद पान खिलाएं. वहीं भाईयों को इस दिन अपनी बहनों को गिफ्ट देना चाहिए.
भाईदूज का शुभ मुहूर्त
प्रात: 07:59 से 09:23 बजे तक
दोपहर 12:10 से 4:23 बजे तक
भाईदूज की पौराणिक कथा
भाईदूज मनाने को लेकर कुछ पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं. एक पु्त्र यम और पुत्री यमुना. संज्ञा जब सूर्यदेव का तेज सहन नहीं कर सकीं तो अपने पुत्र एवं पुत्री को उन्हें सौंपकर अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर चली गईं. युमना का अपने भाई यमराज से काफी स्नेह था. इसी वजह से वे अपने भाई के यहां प्राय: जाती थीं और उनका सुख-दुख पूछा करती थीं. वे यम को अपने घर आने का आमंत्रण दिया करती थी लेकिन यम व्यस्तता के चलते बहन के घर नहीं जा पाते थे.
एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीय को यम अपनी बहन यमुना के घर अचानक पहुंच गए. बहन यमुना अपने भाई को देखकर काफी खुश हुई और उनका खूब आदर सत्कार किया. उन्हें भोजन कराया और उनके माथे पर तिलक लगाया. यमराज ने प्रसन्न होकर यमुना से कुछ वर मांगने को कहा. इस पर यमुना ने कहा कि वर के तौर पर आप हर साल मेरे घर आएं और मेरा आतिथ्य स्वीकार करें. इसी तरह जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे और बहन अपने भाई को टीका लगाकर भोजन कराए उसे यम का कभी भय न रहे.
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