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राम मंदिर देखकर दुनिया से विदा लेना चाहते थे कल्याण सिंह… पूरी नहीं हो पाई अंतिम इच्छा…

लखनऊ. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद (Babri Mosque) का गिरना कल्याण सिंह के जीवन का निर्णायक पल था. कारसेवकों की तरफ से विवादित ढांचा गिराए जाने के कुछ घंटों बाद ही नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उत्तर प्रदेश (UP) के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया था. राजधानी लखनऊ के जय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SGPGI) में अंतिम सांस लेने वाले सिंह की आखिरी इच्छा मंदिर तैयार होने तक जीवित रहने की थी.

पीटीआई रिपोर्ट के अनुसार, राम मंदिर के 2020 में भूमि पूजन से पहले एक अखबार से बातचीत में कहा था कि शायद यह तय था कि मेरे मुख्यमंत्री रहते हुए ढांचा गिराया जाएगा. सिंह के निधन से अयोध्या के संत वर्ग में भी शोक की लहर है. कई संत उन्हें राम मंदिर आंदोलन का अगुआ मानते हुए कह रहे हैं कि आंदोलन का एक अहम अध्याय समाप्त हो गया. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत कई शीर्ष नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है.

तब सिंह ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब विवादित जगह पर मंदिर बन रहा है. अगर कोई विध्वंस नहीं होता, तो कोर्ट भी यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देता. पूर्व सीएम ने कहा था कि उनकी आखिरी इच्छा मंदिर बनने तक जीवित रहने की है. देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में भारतीय जनता पार्टी के पहले सीएम बनने के एक साल बाद ही बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी.

उस दौरान संघ परिवार का उसी जगह पर राम मंदिर बनाने के लिए जारी अभियान जोर पकड़ रहा था. यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए सीएम ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था. उन्होंने एफिडेविट में 16वीं सदी की मस्जिद की सुरक्षा का भरोसा दिया था, लेकिन उन्होंने पुलिस को भी प्रदर्शनकारियों पर गोली नहीं चलाने के आदेश दिए थे. उन्होंने बाद में तर्क दिया कि इससे काफी खून-खराबा हो जाता.

मस्जिद को रक्षा करने में असफल होने की बात स्वीकार करते हुए उन्होंने उसी शाम इस्तीफा दे दिया था. देश के कई हिस्सों में दंगा भड़कने के चलते राज्य विधानसभा को भंग कर दिया था. नवंबर 1993 में हुए अगले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अतरौली और कासगंज सीट से चुनाव लड़ा और दोनों सीटें जीती थीं.

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