कवर्धा. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कवर्धा (Kawardha) जिले के सुप्रसिद्व भोरमदेव मंदिर के भीतर में पानी का रिसाव बढ़ता जा रहा है. ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर (Bhoramdev Temple) का अस्तित्व अब खरते में है. अधिक बारिश होने की वजह से करीब 100 साल पुराने मंदिर की दीवारों से पानी का रिसाव हो रहा है. मंगलवार रात ज्यादा बारिश होने से मंदिर में पानी ज्यादा तेजी से रिसने लगा. मंदिर के गर्भगृह में पुजारियों को बैठने की जगह नहीं थी. कहा जा रहा है कि मंदिर के नींव को भी इससे नुकसान हो सकता है. जिला प्रशासन को इस बात की जानकारी जरूरी है, लेकिन मंदिर की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है.
मंदिर में इस तरह की समस्या कोई नई नहीं है. सालों से इस तरह की दिक्कत बनी हुई है. कुछ दिनों से कवर्धा में अच्छी बारिश हो रही है. मंगलवार रात और बुधवार सुबह की बारिश से मंदिर में रिसाव अधिक हुआ है. इससे मंदिर परिसर में भी पानी भरा गया. मंदिर के पुजारियों ने पानी एकत्रित करने के लिए बाल्टी,डब्बे और बर्तन रखे. फिर भी पानी परिसर में भर गया, जो मंदिर के लिए अच्छा सूचक नहीं माना जा सकता है.
भोरमदेव मंदिर में ये स्थिति सालों से बनी हुई है, लेकिन बारिश का मौसम निकलते ही सुधार की दिशा में काम नहीं किया जाता. साल दर साल इसके रिसाव की मात्रा बढ़ती जा रही है. अगर जल्द इसका सुधार नहीं किया गया तो परेशानी बढ़ सकती है. दरार ज्यादा होने पर पानी का रिसाव भी ज्यादा होगा, जिससे मंदिर की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. भारतीय पुरातत्व विभाग को इस दिशा में ध्यान देने की जरूरत है.
मंदिर के पुजारी आशीष पाठक ने बताया कि बारिश अधिक होने से रिसाव भी तेज हो जाता है. कई मुर्तियों पर पानी टपक रहा है. गर्भगृह में बैठने की जगह नहीं है. बारिश में हर साल इस तरह की स्थिति बनती है. इस साल कुछ ज्यादा ही रिसाव हो रहा है. समिति को इससे अवगत करा दिया गया है.
एक हजार साल पहले हुआ था मंदिर का निर्माण
भोरमदेव मंदिर का निर्माण एक हजार साल पहले हुआ था. करीब 11वीं शताब्दी में फणीनागवंशी राजाओं के द्वारा इसका निर्माण और शिवलिंग की स्थापना की गई थी. लंबा समय गुजरने के बाद इसकी मजबूती में फर्क पड़ना लाजमी है. इतने सालों तक इस ऐतेहासिक धरोहर का टीकना अपने आप में अद्बभूत है. लेकिन वर्तमान में जो दिक्तत आ रही है उस पर सुधार करना भी जरूरी है. क्योंकि इस पर जिला प्रशासन अपनी ओर से कोई सुधार कार्य नहीं करवा सकती है. पुरातत्व विभाग ही इस पर कुछ कर सकता है. इस दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है, जो काफी चिंताजनक है.
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