जगदलपुर: पिछले दिनों तथाकथित सर्व आदिवासी छत्तीसगढ़ के स्वयंभू लोगों के द्वारा सार्वजनिक व शासकीय स्थानों पर भगवान गणेश एवं मां दुर्गा की स्थापना करने वाले के ऊपर वैधानिक कार्यवाही करने अनुविभागीय दंडाधिकारी राजनंदगांव ज़िला को ज्ञापन सौंपा था जिसका खंडन करते हुए पूर्व कैबिनेट मंत्री और आदिवासी नेता केदार कश्यप ने कहा कि जनजातीय समाज वर्षों से भगवान गणेश जी,माता दुर्गा व अन्य देवी देवताओं को पूजते आ रहे हैं जिसका साक्ष्य हजारों वर्षों से ढोलकाल पहाड़ों में गणेश जी व बारसूर के गणेश जी और केशकाल के पास गोबरहीन के शिव जी स्थापित है !
आदिवासी समाज हज़ारों वर्षों से माँ दण्तेश्वरी, मानसी माता, शितला माता, हिंगलाजिन माता को देवी स्वरूप पूजता रहा है तथा बुढ़ादेव,आंगादेव व महादेव की आराधना सदियों सदियों से कर रहा है !
अर्थात् बस्तर से लेकर सरगुजा तक आदिवासी समाज उनकी आराधना हजारों वर्षों से करता आ रहा हैं और हमारे पूर्वजों ने यही संस्कार दिया हैं, अब कौन लोग है जो समाज को दिग्भ्रमित कर विष वमन का कार्य कर रहे हैं ?
केदार ने कहा की विशेष विचारधारा से प्रभावित तथाकथित लोगों के द्वारा अपना स्वार्थपूर्ण करने समय-समय पर समाज को भ्रमित करने के लिए इस प्रकार के ज्ञापन देते रहे हैं, पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में विशेष विचारधारा के प्रभावित लोग सक्रिय है समाज को अंधकार में ढकेलकर बाटने, बदनाम करने व लोक शांति भंग करने की कोशिश की जा रही है, ऐसे स्थिति में प्रदेश की सरकार को लोगों का चिन्हांकित कर कार्यवाही करनी चाहिए नहीं तो भविष्य में अप्रिय घटना हो सकती है,
हाल ही में पिछले दिनों कोंडागांव जिले के ग्राम गिरोला में एक शिक्षक द्वारा प्राथमिक स्कूल के छात्रों को कृष्ण अष्टमी पर उपवास रखने पर पीटा था और भगवान के ऊपर अशोभनीय टीका टिप्पणी की थी जिसका प्रशासन ने कोई कठोर कार्यवाही नहीं की।
केदार कश्यप ने कहा कि प्रदेश सरकार के संरक्षण में प्रदेश भर में संविधान को ताक पर रखकर दवाई, पढ़ाई और अच्छी शिक्षा का प्रलोभन देकर वनवासी क्षेत्रों के जंगलों में घुसकर विशेष समुदाय के द्वारा धर्मांतरण करवाया जा रहा है जिस पर सरकार मौन हैं ! स्वयं मुख्यमंत्री के पिता नंदकुमार एक तरफ़ एक समाज विशेष को भारत से भगाने की धमकी देते हैं ,वही प्रदेश की सरकार धर्मांतरण को बढ़ाकर आदिवासी संस्कृति को लुप्त करने में लगी हुई है !
असामाजिक तत्त्व जो आए दिन भगवान गणेश, दुर्गा, कृष्ण अष्टमी मनाने पर प्रतिबंध की मांग करते हैं धर्मांतरण से जानबूझकर अनभिज्ञ है, वनवासी समाज का एक परिवार धर्म परिवर्तन कर लेता है तो आदिवासी पूजा पाठ, संस्कृति, परंपराओं से दूर पाश्चात्य संस्कृति को ग्रहण करता है ! ऐसे में आज तक कोई बयान समाज को तोड़ने वाले तथाकथित लोगों के द्वारा नहीं आया है यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
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