इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाथरस गैंगरेप कांड मामले की सुनवाई स्थानीय विशेष अदालत (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति) में कराए जाने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. हालांकि अदालत ने सीबीआई के लिए दरवाजे खुले रखे हैं कि अगर वो चाहे तो सुनवाई को दूसरी जगह ट्रांसफर करने के लिए अर्जी दे सकती है. जज राजन रॉय और जज जसप्रीत सिंह की पीठ ने ये आदेश हाल में एक जनहित याचिका पर दिया, जो अदालत ने सितंबर 2020 में हाथरस कांड के फौरन बाद स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर की थी.
इसके पहले 19 मार्च 2021 को पारित आदेश के अनुपालन में हाथरस के जिला अधिकारी, एससी/एसटी अदालत के पीठासीन अधिकारी और सीआरपीएफ की तरफ से रिपोर्ट दाखिल की गई. ये रिपोर्ट पांच मार्च 2021 को हाथरस की अदालत में पीड़ित पक्ष के वकील को कथित तौर पर धमकी दिए जाने और अदालत में पीठासीन अधिकारी के लिए कथित रूप से परेशानी खड़ी किए जाने से संबंधित थी. अदालत ने इन रिपोर्टों को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि उसे नहीं लगता कि हाथरस की विशेष अदालत में हो रही मामले की सुनवाई पर रोक लगाने या उसे कहीं और ट्रांसफर करने का कोई वाजिब कारण मौजूद है.
मामले की सुनवाई कहीं और कराने के लिए अर्जी दे सकती है सीबीआई
अदालत ने ये भी माना कि मामले की सुनवाई कहीं और ट्रांसफर करने का निवेदन इस प्रकरण की सुनवाई की पिछली तारीख के दिन पीड़ित पक्ष के वकील की ओर से मौखिक रूप से किया गया था. उसके लिए कोई लिखित अर्जी नहीं दी गई थी. अदालत ने कहा कि अगर सीबीआई चाहे तो मामले की सुनवाई कहीं और कराने के लिए अर्जी दे सकती है.
दरअसल अदालत ने सितंबर 2020 में हाथरस के चंदपा इलाके में एक लड़की की कथित गैंगरेप के बाद इलाज के दौरान मौत के मामले में उसके शव को अमानवीय तरीके से जलाए जाने का स्वत: संज्ञान लिया था.
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