रायपुर: छत्तीसगढ़ को त्यौहारों का गढ़ बन गया है। यहां परंपरागत अनेक त्यौहारों को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। सभी हिन्दू त्यौहारों में लोगों की आस्था जुड़ी होती है।
इसी क्रम में महिलाओं का एक विशेष त्यौहार जो कि सावन के कुछ दिनों के बाद आता है एवं जन्माष्टमी के दो चार दिन पहले आता है कमरछठ।
इस त्यौहार के पीछे पौराणिक मान्यता है कि इस दिन जो शादीशुदा महिला निर्जला उपवास रखती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है और जिनके संतान हैं वे उनके दीर्धायु की कामना को लेकर यह उपवास करती हैं। ऐसी मान्यता है कि नि: संतान विवाहित स्त्री अगर इस दिन व्रत रखें तो उनकी गोद भर जाती है।
इसी क्रम में राजधानी रायपुर में अनेक जगहों, मोहल्लों, गलियों में महिलाओं ने कमरछठ का व्रत रखकर भगवान बलराम की पूजा अर्चना की। पुरानी बस्ती, टिल्लू चौक, महंतपारा, ब्राम्हणपारा, सारथी चौक की महिलाओं एवं बच्चों में कमरछठ के दिन खासा उत्साह देखा गया।
कमरछठ छत्तीसगढ़ की महिलाओं द्वारा वर्षा ऋतु में रखा जाने वाला व्रत (उपवास) जिसे कमरछठ कहा जाता है। इस दिना महिलाएं सुबह के समय महुआ की लकड़ी की दातुन बनाकर दांत साफ करती हैं और महुआ की खरी से ही स्नान करती हैं। वे उस दिन हल (नांगर) से जुते हुए मार्ग पर नहीं चलती है।
उपवास की सामग्री बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि महुआ के पत्ते की थाली (पतरी), महुआ की लकड़ी का चम्मच, महुआ का तेल (टोरी तेल) उपयोग में लाया जाता है।
लाई, धान, महुआ के सूखे फल, बटर, गेहूं, चना का भी विशेष महत्व होना बताया। उनके अनुसार गांव में किसी के घर सगरी (कुंड) खोदा जाता है, वहां पर फिर बगीचा रुपी कुछ घास और पौधे लगाते हैं। उनमें कासी (घास की प्रजाति), अपामार्ग (चिड़चिड़ा), बेर, आम, चिरईया को किनारे में लगाया जाता है।
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