जगदलपुर: ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का शुभारंभ पाटजात्रा पूजा विधान के साथ हो गया है। 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा पर्व सावन अमावस्या के दिन जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के समक्ष माचकोट के जंगल से लाई गई साल की लकड़ी की पूजा परंपरानुसार कर पाट जात्रा पूजा विधान पूरा किया गया।
इस अवसर पर संसदीय सचिव रेखचंद जैन, अनुविभागीय दण्डाधिकारी जीआर मरकाम सहित बस्तर दशहरा के आयोजन में अहम भूमिका निभाने वाले पुजारी, मांझी-मुखिया, चालकी उपस्थित थे।
बस्तर के ऐतिहासिक दशहरा पर्व की शुरुआत 1408 में राजा पुरुषोत्तम देव द्वारा प्रारंभ की गई थी। दशहरा बस्तर की आराध्य मां दंतेश्वरी के पूजा अनुष्ठान का पर्व बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है। इसमें बिलोरी के जंगल से लाई गई लकड़ी जिसकी पूजा की परंपरा पाटजात्रा पूजा विधान कहलाती है।
वस्तुत: पाटजात्रा पूजा विधान बस्तर दशहरा में बनाये जाने वाले दुमंजिला विशाल रथ के निर्माण में उपयोग की जाने वाले परंपरागत औजारों की पूजा है। इसमें जिस लकड़ी की पूजा की जाती है, उसे स्थानिय बोली में ठुरलू खोटला कहा जाता है, इस लकड़ी से विशालकाय हथौड़ा बनाया जायेगा, जिसका उपयोग बस्तर दशहरा केदुमंजिला विशाल रथ के पहिए के निर्माण के दौरान हथौड़े के रूप में किया जाता है।
इस लकड़ी के साथ ही अन्य परंपरागत रथ निर्माण के औजारों की भी परंपरानुसार पूजा रथ निर्माण करने वाले ग्रामीणों के द्वारा की जाती है, पूजा विधान में अन्य पूजा सामग्रीयों के अलावे विशेष रूप से अंडा, मोंगरी मछली व बकरे की बलि दिये जाने की रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन किया गया।
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