रमेश अग्रवाल, रायगढ़। बहुत पुरानी मिशाल है कि जिसका कोई नहीं होता उसका खुदा होता है, जो किसी न किसी रुप में अपने बच्चो की देखरेख करता है। ठीक इसी प्रकार रायगढ़ चांदमारी के पास रहने वाली रुकमणी साहु उम्र 38 साल इन दिनों उन दर्जनों बच्चों की मां बनी हुयी है, जो अनाथों की तरह लावारिस घूम रहे थे। रुकमणी को लोग प्यार से नंनकी दाई भी बोलते हैं। रुकमणी जो आज काम कर रही है उसकी जितनी भी तारीफ कि जाये कम है। रुकमणी देवी उर्फ नंनकी दाई ने 16 से 20 बच्चों को गोद लिया है, जिसमें से तो 11 बच्चों के माता-पिता ही नहीं है और उनकी देख रेख रायगढ की( मदर टेरसा) नंनकी दाई करती है।//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js
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नंनकी दाई ने वेश्यावृत्ति में लिप्त 2 या 3 मजबूर लड़कियों को भी दलालों के चंगुल से छुड़ा कर उन्हें सही रास्ता दिखाकर अच्छे घरों में उनकी शादी करवा कर उनका भविष्य तो बनाया ही, साथ ही उन्हें समाज की मुख्यधारा से भी जोड़ दिया जो किसी ऐवरस्ट पर्वत चढऩे से भी ज्यादा मुश्किल था जिसे ननकी दाई ने अकेले ही कर दिखाया है। ननकी दाई ने एक 100 साल के वृद्ध का भी पालन पोषण कर रही है उनके यहा एक बुजुर्ग व्यक्ति भी रहता है जिससे उसका कोई रिश्ता तो नहीं लेकिन उन्हें अपने पिता के समान अपने पास रखती है और उनकी सेवा करती है। नंनकी दाई ने अभी 7 महिने पूर्व ही 15 साल के बच्चे को गोद लिया ही और उसकी बहन को उनके बड़े पिता के चंगुल से भी छुड़वाया है जो उसकी बहन पर बुरी नजर रखता था और उसका शोषण भी करता था ।//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js
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रायगढ़ की मदर टेरसा नंनकी दाई ने खुद अनाथों की जिंदगी जी है इसलिए उन्हें इसकी पीड़ा का अहसास है और बस वो यही चाहती है कि इस दुनिया में अनाथ शब्द ही हमेशा के लिऐ समाप्त हो जाए। इसलिए उन्होंने जनता से अपील की है की कम से कम हर एक इंसान एक बच्चे को गोद जरुर ले या एक बच्चे का पूरा खर्चा वहन करे अगर ऐसा हो गया तो इस धरती से सच में अनाथ शब्द ही विलुप्त हो जाऐगा। रुकमणी साहु ने कहा था मुझे किसी के सहयोग की आवश्यकता नहीं न सरकार की न प्रशासन की। मैं खुद अपने बच्चों का भविष्य बना सकती हूं। अपने गम को भुला चुकी रुकमणी देवी अब एक बच्चों का आश्रम भी खोलना चाहती है, जिसके लिए वे निरन्तर प्रयत्नशील है।
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