
जगदलपुर: जिले के कन्हारगांव आईडी विष्फोट में पांच जवानों के शहीद हो जाने के मामले में जांच के बाद भी विस्फोटक का पता क्यों नहीं चल पाया, रोड ओपनिंग पार्टी से कहां चूक हुई इसे लेकर माथपच्ची जारी है। पुलिस ने जांच में पुणे के विशेषज्ञों की मदद ली है। पुणे के रक्षा अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक घटनास्थल कन्हारगांव तक गए थे। उन्होंने मौके की फोटो और वीडियोग्राफी भी कराई है, साथ ही नमूने भी एकत्र किए हैं। हालांकि उनकी जांच में कुछ समय लगेगा, पर माना जा रहा है कि जांच से भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचा जा सकेगा।
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नारायणपुर के कन्हारगांव आईडी विस्फोट की घटना में रोज नए तथ्य सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि आइईडी से जुड़े तार को नक्सलियों ने कार्बन पेपर में लपेट रखा था। बम तो फट गया इसलिए उससे कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया है, लेकिन बम को डेटोनेटर से जोडऩे के लिए जो तार लगाया गया था, उसके अवशेष जांच में मिले हैं, उस तार को कार्बन पेपर में लपेटा गया था।
ऐसा पहली बार हुआ है कि बम निरोधी दस्ते ने सडक़ की जांच की और उसके बाद विस्फोट हो गया। यदि कार्बन पेपर में लपेटने से मेटल का पता न चले तो बम की तलाश करने में सुरक्षा बलों के लिए मुश्किल होगी। कार्बन फाइबर से बने बमों के बारे में तो काफी सूचनाएं हैं पर मामूली कार्बन पेपर में लपेट देने से मेटल का पता न चलना बस्तर में फोर्स के लिए चिंता का सबब है।
ज्ञात हुआ है कि मौके से जो वायर मिला है, वह कार्बन पेपर में लिपटा था। संभवत: नक्सलियों ने मेटल डिटेक्टर से बचने के लिए कार्बन पेपर का इस्तेमाल किया हो। जांच के बाद ही हकीकत का पता चलेगा।
उल्लेखनिय है कि लेबनान, सीरिया आदि देशों में आतंकवादी कार्बन फाइबर से बने बमों का इस्तेमाल करते हैं। कार्बन फाइबर हल्का होता है। इसका इस्तेमाल विमान का ढांचा बनाने व इसी तरह के अन्य महंगे उपकरणों में किया जाता है। कार्बन फाइबर बेहद मजबूत भी होता है। अमेरिकी सेना कार्बन फाइबर से बने बमों को लेकर बहुत परेशान रही। वर्ष 2018 में अमेरिकी रक्षा अनुसंधान केंद्र ने ऐसा डिटेक्टर विकसित किया जो कार्बन फाइबर या प्लास्टिक से बने बमों को भी पकड़ सकता है। हालांकि बस्तर में सुरक्षाबलों के पास ऐसे डिटेक्टर अभी नहीं हैं।