नई दिल्ली: स्वेज नहर को लेकर पिछले दो दिन से लगातार चर्चा हो रही है। यहां पर विशालकाय आकार का एक कार्गो शिप एमवी एवर गिवेन फंस गया है। इस जहाज की वजह से अब ट्रैफिक रुक गया है और जो ट्रैफिक रुका है उसकी वजह से करीब 10 बिलियन डॉलर की कीमत का सामान पहुंच नहीं पा रहा है।
कहा जा रहा है कि अगर जल्द इस समस्या का हल नहीं निकला तो फिर एशिया और यूरोप के देशों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। गुरुवार तक इसे निकाले जाने के प्रयास जारी थे और हर कोशिश विफल ही रही। इस जहाज पर सवार क्रू में सभी भारतीय हैं तो शिप की कैप्टन इजिप्ट की हैं।इजिप्ट की कैप्टन मारवा एल सेलेहैदर एमवी एवर गिवेन को कमांड कर रही हैं। इस जहाज की वजह से रास्ता बंद हो गया है और माना जा रहा है कि क्षेत्र में तनाव भी बढ़ सकता है। एमवी एवर गिवेन के जापानी मूल के मालिक ने लिखित में माफी मांगी है।
जहाज के मालिक शोइए किसेन काइसा लिमिटेड की तरफ से कहा गया है कि हम इस जहाज को निकालने के लिए प्रतिबद्ध हैं और जितनी जल्दी हो सके इस स्थिति को सुलझाने की कोशिशें कर रहे हैं। हम इस घटना की वजह से प्रभावित हुई सभी पार्टियों से माफी मांगते हैं जिसमें वो जहाज भी शामिल हैं जिन्हें स्वेज नहर के रास्ते से होकर गुजरना है। जहाज पर कितने भारतीय हैं और वो कहां से हैं इस बारे में अभी तक कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी है। शिप पर दो कैप्टन हैं और दोनों ही इजिप्ट के हैं।
स्वेज नहर भूमध्य सागर और लाल सागर को आपस में जोड़ती है। यूरोप और एशिया के बीच होने वाले व्यापार के लिए यह किसी शॉर्ट कट की तरह है। स्वेज नहर से दुनिया का 10 प्रतिशत ट्रेड गुजरता है और यह करीब 193 किलोमीटर लंबी है। वो जहाज और टैंकर्स जिन्हें अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से के करीब से होकर गुजरना होता है वो इसी स्वेज नहर से होकर जाते हैं।
शिपिंग जनरल लॉयड्स लिस्ट की तरफ से बताया गया है कि रोजाना इस रास्ते से करीब 10 बिलियन डॉलर यानी 7500 करोड़ रुपये (हर घंटे 312 करोड़ रुपये) का सामान गुजरता है। इसमें से 5.1 बिलियन डॉलर सामान पश्चिमी दिशा की तरफ तो 4.5 बिलियन डॉलर का सामान पूर्व दिशा की तरफ जाता है।
स्वेज नहर पर एक तिहाई ट्रैफिक कंटेनर शिप्स का होता है। लॉयड्स का मानना है कि 50 से ज्यादा जहाज औसतन एक दिन में गुजरते हैं और वो करीब 1.2 बिलियन टन का कार्गो लेकर जाते हैं। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर शरत गणपति ने बताया कि एशिया और यूरोप जब सामान भेजने की बात होती है तो न तो सडक़ का कोई रास्ता है और न ही रेल नेटवर्क है।
ऐसे में सिर्फ स्वेज नहर ही आखिरी विकल्प है। भारत की तरफ से आने वाला कपास जिनसे कपड़े बनते हैं, मिडिल ईस्ट से आने वाले पेट्रोलियम पदार्थ जो प्लास्टिक के लिए उपयोग होते हैं और चीन से आने वाले ऑटो पार्ट्स, ये सभी यूरोपियन प्रॉडक्ट्स के लिए बहुत ही जरूरी हैं। अब रास्ता बंद होने की वजह से ये यूरोप फिलहाल नहीं पहुंच पा रहे हैं।
ओरगॉन यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर फू कुन के मुताबिक स्वेज नहर के ब्लॉक होने से अमेरिका पर कोई असर नहीं पड़ेगा जिसे पश्चिमी तट पर एशिया से आने वाले ज्यादातर शिपमेंट्स मिलते हैं, लेकिन यूरोप से आने वाला आयात प्रभावित हो जाएगा। इस ब्लॉकेज की वजह से खाली कंटेनर्स को एशिया वापस आने में काफी समय लगेगा।
एक कंटेनर की कमी से महामारी के समय मांग पर खासा असर पड़ेगा और इससे महंगाई भी बढ़ सकती है। स्वेज नहर पर जो स्थिति है उसकी वजह से सप्लाई चेन पर भी खासा असर पडऩे की आशंका जताई गई है। मूडीज एनालिटिक्स के चीफ इकोनॉमिस्ट मार्क जैंदी की मानें तो अगर यह ब्लॉकेज ज्यादा हफ्तों या फिर कई माह तक नहीं चला तो फिर कोई दिक्कत नहीं आएगी। हां, तेल की कीमतों में हल्का इजाफा जरूर हो सकता है।
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