तीर्थराज प्रयाग की पहचान मठ-मंदिरों के साथ वृक्ष भी कराते हैं। सालों से आधी-तूफान झेलते हुए वृक्ष अपने स्थान पर खड़े हैं। अक्षयवट उसमें से सबसे प्राचीन वृक्ष माना जाता है। हालांकि अक्षयवट के अलावा भी प्रयागराज में कुछ वृक्ष ऐसे हैं, जिनकी सदियों पुरानी पहचान है और वह हर किसी की आस्था का केंद्र बने हैं। दारागंज में स्थित शमी की गिनती उन्हीं वृक्ष में होती है। वर्तमान समय में दारागंज मोरी स्थित भारतीय स्टेट बैंक के सामने श्रीमंत महाराजा भोंसले सरकार नागपुर के द्वारा बनवाए गए प्राचीन भवन में यह वृक्ष आज भी बहुत हरा भरा है।
इस शमी वृक्ष का नियमित दर्शन-पूजन करने वालों की कामना होती है पूर्ण
बताया जाता है कि शमी के इस वृक्ष का नियमित दर्शन-पूजन करने वालों की हर कामना पूर्ण होती है। ऐसे भक्तों पर शनिदेव कभी रुष्ट नहीं होते। बल्कि प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद देते हैं जिससे उन्हें घर में धन व सम्पदा आती है। मुगलकाल में इसे नष्ट करने का कुचक्र रचा गया, लेकिन कोई सफल नहीं हो पाया।
इस वृक्ष को संरक्षित करने की मांग उठी
प्रयागराज सेवा समिति के सचिव तीर्थराज पांडेय ‘बच्चा भैया’ ने शासन, प्रशासन से इस वृक्ष को संरक्षित करने की मांग किया है। कहा कि इसको भी विरासत वृक्ष का दर्जा दिया जाए। धर्माचार्य रविशंकर जी महाराज बताते हैं कि विजयदशमी के दिन अगर इस शमी का दर्शन पूजन किया जाए तो शनि प्रकोप से जल्द शांति मिलती है। साथ ही साधक के पूर्व के कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। दारागंज निवासी वृक्ष के महत्व के कारण कई पीढ़ियों से पूजन-अर्चन कर रहे हैं। वर्तमान समय में यहां रहने वाले मराठी ब्राह्मण परिवार इस का पूजन अर्चन और देखरेख कर रहे हैं।
विरासत की तरह संजोने की भी उठी आवाज
प्रयागराज सेवा समिति के अध्यक्ष धर्मराज पांडेय ने इस वृक्ष को विरासत की तरह संजोने की मांग उठाई है। समाजसेवी फूलचंद दुबे, डॉ शंभूनाथ त्रिपाठी अंशुल, मूछ सम्राट दुकान जी कहते हैं कि शमी का यह वृक्ष प्रयागराज की पहचान है। इसे बचाये रखने की जिम्मेदारी शासन की है। शासन को उसके मद्देनजर उचित कदम उठाना चाहिए।
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