संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा का नजारा आज (9 फरवरी) भावुक करने वाला रहा। दरअसल, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को विदाई देते वक्त पीएम मोदी के आंसू छलक आए। इसके बाद गुलाम नबी आजाद भी भावुक हो गए। कटुता और हंगामे के लिए बदनाम हो रहे देश के राजनीतिक परिदृश्य में यह भावुक पल सुकून की बयार बनकर आए। दोनों ओर से बही यह भावुकता लोकतंत्र को मजबूत ही करेगी। मिसाल बनेगी। …लेकिन इस भावुक माहौल के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह बिखरती हुई कांग्रेस में भाजपा की एक और सेंध है या आजाद के बहाने कश्मीर पर निशाना साधने की तैयारी है?
राज्यसभा में क्यों भावुक हो गए पीएम मोदी?
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार दूसरे दिन राज्यसभा को संबोधित किया। दरअसल, सोमवार को जम्मू-कश्मीर के चार सांसदों को राज्यसभा से विदाई दी गई। पीएम मोदी ने एक-एक करके गुलाम नबी आजाद, शमशेर सिंह, मीर मोहम्मद फयाज और नजीर अहमद का नाम लिया और शुभकामनाएं दीं। इस दौरान पीएम मोदी 16 मिनट बोले, जिनमें पूरे 12 मिनट आजाद के नाम रहे। आजाद का नाम लेते-लेते पीएम मोदी इतने भावुक हो गए कि रो दिए। अंगुलियों की पोर से अपने आंसू पोंछे, फिर पानी पिया। …और करीब 6 मिनट तक सिसकियां लेते-लेते आजाद से अपने संबंधों को याद करते रहे।
पीएम मोदी की ‘सिसकी’ में सियासत कैसे?
पीएम मोदी के आंसू भले ही अपने राजनीतिक दोस्त के लिए थे, लेकिन उनकी ‘सिसकी’ के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं। दरअसल, उनके बोल में सियासत की ‘सुई’ खंगाली जा रही है। पीएम मोदी ने कहा कि आजाद का बगीचा कश्मीर घाटी की याद दिलाता है। माना जा रहा है कि इस बहाने उन्होंने कश्मीर में सियासत की डोर साधने की कोशिश की। इसके अलावा पीएम मोदी ने आजाद से यह भी कहा कि मेरे द्वार आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस में अलग-थलग चल रहे गुलाम नबी आजाद को पीएम मोदी ने अपने पाले में लाने का प्रयास उसी तरह किया है, जैसे कांग्रेस में हाशिए पर जा चुके प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनते वक्त भाजपा ने समर्थन दिया था।
गुलाम नबी आजाद पर निशाना क्यों?
अब सवाल उठता है कि आखिर गुलाम नबी आजाद में पीएम मोदी ने इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाई? दरअसल, आजाद काफी समय से कांग्रेस में हाशिए पर हैं। कुछ बयानों की वजह से राहुल गांधी ने उन पर भाजपा से सांठ-गांठ का आरोप भी लगा दिया था। हालांकि, उस दौर में आजाद ने इस्तीफा देने की भी पेशकश कर दी थी। मामला भले ही ठंडे बस्ते में चला गया, लेकिन शांत नहीं हुआ था। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राज्यसभा का आंसुओं से भीगा परिदृश्य उसी चिंगारी को और भड़काएगा।
बंगाल जैसी ‘कमजोर कड़ी’ की तलाश में भाजपा?
गौरतलब है कि भाजपा की नजर विपक्षी दलों के ऐसे मजबूत नेताओं पर लगातार बनी हुई है, जिनकी वर्तमान स्थिति अपने ही दल में थोड़ी कमजोर है। पश्चिम बंगाल में सुवेंदु अधिकारी इसके ताजा उदाहरण हैं। बंगाल के नंदीग्राम इलाके के ‘अधिकारी’ माने जाने वाले सुवेंदु टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी से थोड़े खफा हुए तो भाजपा ने उन्हें झट से अपने पाले में मिला लिया। इससे पहले मुकुल रॉय को भी भाजपा ने ऐसे ही भगवा रंग में रंग लिया था।
क्या भगवाधारी हो जाएंगे आजाद?
पहले पीएम मोदी के आंसू और बाद में गुलाम नबी आजाद का भावुक होना भारतीय राजनीति के अनूठे संगम की एक मिसाल बन गया है, लेकिन इससे एक सवाल यह भी उठता है कि क्या आजाद भाजपा का दामन थाम लेंगे? हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसा होना आसान नहीं है। पीएम मोदी के आंसुओं से आजाद भले ही भावुक हो गए, लेकिन उम्र के इस पड़ाव में उनका पाला बदलना थोड़ा मुश्किल लगता है।
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