रायपुर. चर्चा के दौरान डाॅ. गरिमा राजिमवाले ने बताया कि उन्होंने रेडियोलाॅजी में एम.डी.की डिग्री हासिल की है और नसों की बीमारी (वेरिकोस-वेंस), डीप-वेन थ्राम्बोसिस का ईलाज करती हैं। उन्होंने बताया कि इस विधा के माध्यम से विभिन्न प्रोसिजर करने वाले चिकित्सको की प्रदेश में कमी है।
वर्तमान में डाॅ. गरिमा वी.वाॅय. हाॅस्पिटल में कार्यरत हैं और लगातार इस प्रोसिजर को अंजाम दे रहीं है। डाॅ. गरिमा ने बताया कि वेरिकोस-वेंस बीमारी के गंभीर परिणाम भी सामने आते हैं। समय पर उपचार न लेने पर पांव की नसों में होने वाली यह बीमारी पूरे पांव को ही गला सकती है।
अतः इसका समय रहते उपचार आवश्यक है। उन्होंने यह भी बताया कि इसी तरह डीप-वेन थ्राम्बोसिस बीमारी में शरीर की नसो में खून के थक्के (ब्लड क्लाट्स) हो जाते हैं। ज्यादातार ये खून के थक्के पांव में ही होते है, जो कि समय रहते उपचार न लेने पर मस्तष्कि, हृदय को सीधे प्रभावित कर सकते हंै।
जिसका ईलाज चीर-फाड़ और टांका लगाये बिना आसानी से संभव हो पा रहा है। इस प्रोसिजर के बाद मरीज की एक से दो दिन में छुट्टी भी हो जाती है। डाॅ. गरिमा ने बताया कि इस प्रोसिजर के लिए उन्होंने विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है। एक जानकारी के मुताबित प्रदेश में वर्तमान में इस प्रकार के प्रोसिजर करने वाले 03 से 04 चिकित्सक ही मौजूद हैं।
डाॅ. गरिमा राजिमवाले के छत्तीसगढ़ में अपनी सेवायें प्रारंभ करने से इस विधा का एक और चिकित्सक मिल सकी हैं, जो कि प्रदेश में निवासरत् इस बीमारी के मरीजों के लिए एक अच्छी खबर हैं।
मिले है चार गोल्ड मेडल
डाॅ. गरिमा राजिमवाले को अपनी एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई के दौरान चार गोल्ड मेडल मिले है। उनके खाते में यह एक बड़ी उपलब्धि है। महाराष्ट्र में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ में ही अपनी सेवायें देने का निर्णय लिया है जो कि प्रदेश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सोनोग्राफी और कलर डाप्लर भी
डाॅ. गरिमा राजिमवाले ने बताया कि इन महत्वपूर्ण विधाओं के साथ-साथ वे सोनोग्राफी, कलर डाप्लर, बायोप्सी और सीटी एम.आर.आई. भी करती है। तात्यापारा चैंक स्थित यशवंत हाॅस्पिटल में वे शाम 06ः00 से 09ः00 बजे तक इसके लिए उपलब्ध रहती है। इसके अलावा गंभीर शल्य चिकित्सा के लिए कमल विहार स्थित वी.वाॅय. हाॅस्पिटल में सुबह 10ः30 से शाम 05ः00 बजे तक उपलब्ध रहती हैं।
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