यह कोई किस्सागोई नहीं बल्कि हकीकत है. देश की पहली बिना ड्राइवर वाली ट्रेन का परिचालन शुरू हो गया है. दिल्ली मेट्रो की पहली बिन चालक ट्रेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. यह ट्रेन डिपो से खुद-ब-खुद ट्रैक पर चल पड़ेगी. लेकिन ऐसा कैसे संभव होगा? इस संबंध में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) ने बताया कि कंट्रोल रूम से हमेशा ट्रेन का टाइम टेबल अपडेट कर दिया जाएगा.
डीएमआरसी के मुताबिक जैसी कमांड मिलेगी, इस ट्रेन में वैसा ही होगा. यानी ट्रेन कब चलेगी, कब रुकेगी और सर्विस के दौरान कैसे व्यवहार करेगी, ये सब कुछ कमांड पर निर्भर करेगा. ट्रेन की आईडी में उसके डिपो से निकलकर ट्रैक पर पहुंचने का समय डाल दिया जाएगा. मेट्रो ट्रेन खुद ही डिपो में लाइट, एयरकंडीशन, अनाउंसमेंट सिस्टम ठीक है या नहीं, यह चेक किए जाने के बाद मेन लाइन पर आकर खुद दरवाजे खोलेगी. अनाउंसमेंट करेगी और क्लोजिंग टाइम पर वापस डिपो पहुंचेगी. यही काम पहले ट्रेन ड्राइवर करता था, जिसे अब तय समय पर ट्रेन खुद कर लेगी.
आम मेट्रो ट्रेन में ऑपरेट करने से पहले ट्रेन ऑपरेटर या ड्राइवर ब्रेक लाइट अनाउंसमेंट सिस्टम सब कुछ खुद से चेक करता था और इसमें आधे घंटे से ज्यादा का वक्त लगता था. ड्राइवरलेस ट्रेन की हर फीड सीसीटीवी में लाइव रिकॉर्ड होगी. जिन ट्रेनों को ड्राइवर ऑपरेट करता है, वो पूरी ऑटोमेटेड होती है लेकिन ड्राइवरलेस नहीं होती. इसमें ट्रेन स्टार्ट करना और डोर ओपन-क्लोज ड्राइवर ही करता है. अब ये काम भी ऑटोमेटेड हो गए हैं.
किस लाइन पर नहीं चलाई जा सकती ये ट्रेन
आटोमेटिक ट्रेन सुपरविजन (एटीएस) में ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोडक्शन (ATP) और ऑटोमेटिक ट्रेन ऑपरेशन (एटीओ) दोनों को ही फेज-4 की मेट्रो में हटा दिया गया है. बता दें कि फेज-1 और फेज-2 की मेट्रो में कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन सिग्नलिंग सिस्टम (सीबीटीएस) नहीं था. इसलिए वहां इन ट्रेनों का परिचालन संभव नहीं है. फेज 3 की पिंक और मैजेंटा लाइन पर सीबीडीटी बेस्ड सेंटर कम्युनिकेशन नेटवर्क खड़ा किया जा सकता है. इसलिए केवल इन्हीं लाइन्स पर ड्राइवरलेस मेट्रो ट्रेन चल सकती है.
क्या होता है सीबीडीटी
मेट्रो फेज 4 को ही सीबीडीटी बेस्ड बनाया जाना संभव है. सीबीडीटी रेडियो सर्किट होता है, जिसे सैटेलाइट के जरिए कमांड मिलता रहता है. ड्राइवरलेस ट्रेन के अलग आम ट्रेनों में ट्रैक बेस्ड सिग्नल होता है. अलग-अलग ट्रेन सर्किट अलग-अलग सिग्नल देता था, जबकि ड्राइवरलेस ट्रेन में उसके अंदर ही सिस्टम बना हुआ है जो सेंट्रल सर्वर से जुड़ा होता है. यह बताता है कि कौन सी ट्रेन कहां चल रही है. सेट्रल कंट्रोल सर्वर के जरिए सैटेलाइट से मॉनिटर हो रहा है.
इमरजेंसी में क्या होगा
पैसेंजर अलार्म बटन दबाएगा तो सीधे कंट्रोल रूम में बात होगी. पहले ये काम ट्रेन ऑपरेटर करता था. शुरुआती दिनों में रोमिंग अटेंडेंट रखा जाएगा. डीएमआरसी का दावा है कि स्नैग के वक्त मैन्युअल कमांड से कुछ मिनट के अंदर दूसरी ट्रेन आगे बढ़ जाएगी. साल 2021 तक पिंक लाइन पर भी ड्राइवरलेस मेट्रो शुरू हो जाएगी. अभी तक 26 ड्राइवरलेस ट्रेन का टाइम टेबल तैयार है. तीन महीने में सभी 26 ड्राइवरलेस मेट्रो ट्रेन ट्रैक पर उतार दी जाएंगी. सभी टेक्नोलॉजी से लैस हैं. सिर्फ 5 ड्राइवरलेस ट्रेन ट्रैक पर उतारी गई है.
कैसे पता चलेगा कि किस ट्रेन में हैं
एक सवाल यह भी है कि आखिर यात्री को कैसे पता चलेगा कि वो किस ट्रेन में है. इसे लेकर डीएमआरसी का कहना है कि स्पेशल अनाउंसमेंट होगा कि ये ड्राइवरलेस ट्रेन है. दरवाजे एक बार बंद हो गए तो फिर नहीं खुल पाएंगे. पहली बार ड्राइवरलेस ट्रेन में सफर कर रही वंशिका को पता ही नहीं था कि वो बिना ड्राइवर वाली ट्रेन में सवार हैं. पायलट ट्रेनिंग कर रही वंशिका ने कहा कि तकनीक के साथ तो ड्राइवर की जॉब भी चली जाएगी. वहीं ड्राइवरलेस ट्रेन में सफर कर रही पेशे से एचआर ट्रेनर गरिमा ने कहा कि बहुत अच्छा है कि टेक्नोलॉजी आगे बढ़ रही है. हम भी बढ़ रहे हैं.
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