ब्रिटेन में कोरोना वायरस के नए रूप को लेकर कोहराम मचा हुआ है. एयर बबल करार कर चुके लगभग सभी देश ब्रिटेन से संपर्क खत्म कर चुके हैं. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) के मुताबिक उनकी एक्सपर्ट टीम नए वायरस को 70 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक मान रही है. हालांकि अभी वायरस को समझने में दो सप्ताह का समय लग सकता है. इस बीच देखते हैं कि वायरस के इस नए वेरिएंट के बारे में हमें कितना पता है.
वायरस वेरिएंट क्या है और यूके में पाए गए प्रकार को लेकर क्यों मचा हड़कंप?
वायरस जब होट्स कोशिका के भीतर अपनी संख्या बढ़ाता है तो वायरस के स्वरूप में बदलाव होता है. यही म्यूटेशन है. ये वायरस में कॉमन है. वायरस की कॉपीज बनने की प्रक्रिया में कभी-कभी गड़बड़ी आ जाती है. दूसरे वायरस पैदा करने के दौरान अगली पीढ़ी के लिए मूल जेनेटिक मटेरियल या कहें, कोड ट्रांसफर करने में गलती हो जाती है. ऐसे में जो नया वारयस पैदा होता है उसमें जेनेटिक कोड अपनी पूर्व पीढ़ी से अलग होता है. नतीजतन नया वायरस अपने वंश के वायरस के लक्षणों से अलग लक्षणों वाला होता है.
ब्रिटेन में जो स्ट्रेन मिला है, वो मूल जेनेटिक मटेरियल के साथ तो है, साथ ही ज्यादा मजबूत है. ये वायरस तेजी से फैलता है. कम के कम फिलहाल तो ब्रिटेन के मामले में यही दिख रहा है.
वायरस का नया रूप कब मिला और इसमें डर की क्या बात है?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक नया प्रकार दक्षिणपूर्व ब्रिटेन में दिखा. दिसंबर में जब इस हिस्से में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े, तब वैज्ञानिकों की इस बात पर नजर गई. पता चला कि नया वायरस मरीजों में सितंबर से ही सक्रिय था.
नए वायरस को स्टडी कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया कि कोरोना वायरस शुरुआत से अब तक 23 बार म्यूटेशन की प्रक्रिया से गुजर चुका है. बीच के काफी सारे म्यूटेशन में वायरस खतरनाक नहीं हुआ, वहीं ये नया प्रकार संक्रमण की दृष्टि से काफी घातक माना जा रहा है.
नए कोरोना वायरस में कांटेदार संरचना 8 बार म्यूटेशन से गुजरकर 8 गुनी ज्यादा कांटेदार हो चुकी है. नए वायरस में जो कांटेदार संरचना ज्यादा होती है, उसके जरिए वो शरीर में और आसानी से घुस जाता है. कोरोना की यह कांटेदार संरचना ही उसे हमारे लिए ज्यादा घातक बना चुकी है. इसी लाइन को लेकर दुनिया के तमाम वैज्ञानिकों ने वैक्सीन तैयार की, जो कोरोना की कांटेदार संरचना पर वार करके उसे हमारे शरीर की कोशिकाओं से जुड़ने से रोक सके.
तो क्या वायरस का नया प्रकार ज्यादा संक्रामक है?
हां, ऐसा लग रहा है. इस बारे में मिले शुरुआती डाटा इसी तरफ इशारा करते हैं. कुछ ही हफ्तों में नए रूप ने पुराने रूप को रिप्लेस कर दिया और नए आ रहे 60 प्रतिशत मामले इसी वायरस की देन हैं. इंपीरियल कॉलेज लंदन के हेल्थ एक्सपर्ट मान रहे हैं कि म्यूटेशन से गुजरा ये नया प्रकार मूल वायरस से 50 से 70 प्रतिशत तक ज्यादा तेजी से फैलता है. हालांकि अभी इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है.
क्या नया रूप लोगों को गंभीर तौर पर बीमार कर रहा है, या जानलेवा हो रहा है?
इस बारे में फिलहाल ज्यादा नहीं पता और रिसर्च की जानी बाकी है. एसोसिएटेड प्रेस से बातचीत में सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल के पूर्व वैज्ञानिक Dr. Philip Landrigan ने ये बात कही. दूसरी ओर वायरस का नया रूप लोगों को ज्यादा गंभीर तौर पर बीमार कर सकता है, ये मानने के भी कारण हैं. दक्षिण अफ्रीका में इसी वायरस के कारण बीमार लोगों में वायरस लोड ज्यादा दिखा. यानी शरीर में वायरस तेजी से बढ़ रहा है, जो कमजोर इम्युनिटी वालों को गंभीर रूप से बीमार कर सकता है.
क्या नया प्रकार भारत में भी मिल चुका है? इसे फैलने से रोकने के लिए क्या उपाय अपनाए जा रहे हैं?
भारत में फिलहाल ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि वायरस तेजी से कई देशों में जा चुका है, जैसे ब्रिटेन के अलावा ये डेनमार्क, बेल्जियम, नीदरलैंड्स और ऑस्ट्रेलिया में भी दिख चुका. दक्षिण अफ्रीका में मिलता-जुलता रूप दिखा है. अब चूंकि इस वेरिएंट के बारे में देश जानते हैं तो हो सकता है कि नए मामले पता चलें.
भारत सरकार ने सोमवार को ब्रिटेन के लिए फ्लाइट्स सस्पेंड कर दीं, जो फिलहाल साल के अंत तक जारी रहेगा. अलग-अलग राज्य भी इस नए रूप को देखते हुए अलग कदम उठा रहे हैं. महाराष्ट्र में रात 11 से सुबह 6 बजे तक का कर्फ्यू लगाया जा चुका है, जो 5 जनवरी तक लागू रहेगा. यूरोप और मिडिल ईस्ट से आने वाले सारे लोगों को अस्पतालों में क्वारंटाइन किया जा रहा है.
तो क्या वायरस के नए रूप पर वैक्सीन बेअसर हो जाएगी?
फिलहाल उम्मीद की जा रही है कि वैक्सीन नए वेरिएंट पर भी उतनी ही प्रभावी हो. हालांकि इस बारे में भी अभी कुछ पक्का नहीं और वैज्ञानिक इसे समझने की प्रक्रिया में हैं. मॉडर्ना और फाइजर वैक्सीन, इस फॉर्मूला पर काम करती हैं कि वे सीधे वायरस की कांटेदार संरचना पर वार करती हैं.
वैक्सीन हमारे भीतर एंटीबॉडी बनाती है. ऐसे में अगर वायरस हमपर अटैक करता है तो एंटीबॉडी उसकी कांटेदार संरचना पर चिपक जाती है और वायरस हमारी कोशिकाओं के भीतर नहीं पहुंच पाता. अब अगर म्यूटेशन के कारण वायरस की कांटेदार संरचना का आकार बदल जाए तो एंटीबॉडी उससे उतनी मजबूती से नहीं जुड़ पाएगी. ऐसे में संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.
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