दुनियाभर में तकरीबन 11 महीने से कहर बरपा रहे कोरोना वायरस की वैक्सीन (coronavirus vaccine) जल्द ही आ जाएगी. एक साथ कई संभावित वैक्सीन पर काम चल रहा है. साथ ही सारे देश अपने हिसाब से वैक्सीन लेने की रणनीति बना रहे हैं. इस बीच इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस ऑर्गेनाइजेशन (Interpol) ने डर जताया है कि अपराधी बड़े स्तर पर वैक्सीन को टारगेट करने वाले हैं.
चोरी और मिलावट के अलावा ऑनलाइन खतरे भी बुरी तरह से बढ़ने वाले हैं. अपराधी तत्व इसके लिए महीनों से तैयारी कर चुके. मिरर में आई एक रिपोर्ट में इंटरपोल के सेक्रेटरी जनरल के हवाले से ये बात कही गई. सेक्रेटरी जनरल जर्गन स्टॉक कहते हैं कि जैसे देश की सरकारें वैक्सीन उत्पादन और उसके बंटवारे की तैयारी में हैं, वैसे ही इंटरनेशनल अपराधी इस सप्लाई चेन को बिगाड़ने की फिराक में हैं.
बाजार में अभी से ही कोरोना जांच के लिए नकली टेस्ट किट आने की रिपोर्ट मिल रही है. ये खतरनाक है क्योंकि इसपर भरोसा कर मरीज अनजाने में बीमारी बढ़ा रहा है. और वैक्सीन आने के बाद इसका खतरा और बढ़ जाएगा. इसके बाद हर्ड इम्युनिटी की बात पर भरोसा कर देश अपनी सीमाएं खोल देंगे और बीमारी दोबारा तेजी से बढ़ सकती है. बता दें कि फिलहाल दुनियाभर में वैक्सीन देना एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें सालभर भी लग सकता है.
माना जा रहा है अपराधी वैक्सीन के साथ बड़ी हेरफेर करने वाले हैं. इंटरपोल को ऐसी वेबसाइट्स तैयार होने की जानकारी मिली है जो वैक्सीन के नाम पर जहर बेचेगी. ऐसे में देशों की साइबर सेल के पास एक बड़ा काम ऐसी साइटों की पहचान करना और लोगों को इस बारे में जागरुक करना भी होगा.
डार्क वेब वैक्सीन के आम लोगों तक लगना शुरू होने से पहले से ही सक्रिय है. वे कोरोना ठीक करने के नाम पर नकली प्लाज्मा तक बेच रहे हैं. Australian Institute of Criminology ने डार्क वेब पर इस खून की अवैध बिक्री का खुलासा किया है.
अमीर लोग इसे खरीद रहे हैं ताकि वे कोरोना के लिए इम्यून हो सकें. इसके अलावा भी कोरोना से जुड़ी कई चीजों की बिक्री जोरों पर है. इसमें पीपीई भी हैं, जैसे N95 मास्क, ग्लव्स और बॉडी सूट. माना जा रहा है कि ये फैक्ट्रियों या फिर गोदाम से चुराए गए हैं. चोरी के बाद ये भारी कीमत पर डार्क नेट पर बेचे जा रहे हैं.
डार्क नेट इंटरनेट दुनिया का ऐसा सीक्रेट संसार है, जहां कुछ ही ब्राउजर के जरिए पहुंचा जा सकता है और ये सर्च इंजन में भी नहीं आता है. डार्क नेट का इस्तेमाल अक्सर अपराधी गलत कामों के लिए करते हैं. खासकर ये किसी चीज की अवैध बिक्री के लिए उपयोग होता है, जैसे नशा. अब जबकि कोरोना के कारण पूरी दुनिया परेशान है, तब डार्क नेट ज्यादा सक्रिय हो चुका है. इंटरपोल अब वैक्सीन के मामले में भी इससे डरा हुआ है.
इस बीच ये भी जानते चलें कि आखिर इंटरपोल क्या है और क्यों इसकी चेतावनी को गंभीरता से लेना चाहिए. इसका पूरा नाम इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस ऑर्गेनाइजेशन है. 192 देश इसके सदस्य हैं, जिनमें से एक भारत भी है. साल 1923 में इस संगठन की स्थापना हुई थी, जिसका हेडक्वार्टर फ्रांस के लिऑन में तैयार हुआ.
इसका मकसद है दुनियाभर की पुलिस इकट्ठे काम करे ताकि खूंखार और ऊंची पहुंच वाले अपराधियों को पकड़ा जा सके. मॉर्डन समय में चूंकि क्रिमिनल्स भी तकनीकों का सहारा लेकर काम करते हैं तो इंटरपोल भी तकनीकी तौर पर काफी संपन्न है.
हमें बहुतों बार इंटरपोल की मदद की जरूरत होती है, खासकर इंटरनेशनल लेवल पर तस्करी के मामलों में, बड़े स्तर के आर्थिक घपलों में, जब आरोपी देश छोड़कर भाग जाता है. ड्रग्स और नकली दवाओं के रैकेट के मामले में भी भारत कई बार इंटरपोल से मदद ले चुका है. ऐसे में इसकी चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता.
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