जो बाइडन (Joe Biden) के अमेरिकी राष्ट्रपति (US President) बनने की खबरों के साथ ही कमला हैरिस के अमेरिकी उपराष्ट्रपति (Vice President of USA) चुने जाने की सुर्खियां भारत के साथ ही एशिया के लिए काफी अहम हैं. हैरिस पहली अफ्रीकी अमेरिकी (African American) महिला, पहली दक्षिण एशियाई अमेरिकी (Asian American) और पहली भारतीय मूल की महिला हैं, जो इस मुकाम तक पहुंची हैं. जैसा कि चुनाव से पहले ही विशेषज्ञों और एक्टिविस्टों ने अनुमान लगाया था, ठीक उसी तरह हैरिस को चुनाव में अश्वेत (Black Americans) अल्पसंख्यकों के वोट अच्छी तादाद में मिले.
अपने चुनाव प्रचार के दौरान अश्वेत नेताओं और वोटरों को प्रभावित करने में हैरिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अश्वेत आबादी के लिए ऐतिहासिक तौर पर पहचाने गए कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों से लेकर महिलाओं के अल्फा कप्पा जैसे संगठनों के साथ हैरिस ने ठीक ढंग से तालमेल बिठाया. यह समझा जाना चाहिए कि हैरिस की जीत आखिर क्यों कई मायनों में ऐतिहासिक है.
मीटिंग रोककर ईश्वर को धन्यवाद दिया गया
हैरिस के उपराष्ट्रपति चुने जाने की खबर जैसे ही जारी हुई, अल्फा कप्पा संगठन की मीटिंग जारी थी, जिसे बीच में ही रोककर पूरे बोर्ड ने हैरिस को बधाई देते हुए एक जश्न मनाया. साथ ही, संगठन की प्रेसिडेंट ग्लेंडा ग्लोवर ने कहा कि यह किसी संगठन विशेष की नहीं, बल्कि दुनिया भर की महिलाओं, खासकर अश्वेत महिलाओं के लिए गर्व का क्षण रहा.
अश्वेतों के लिए खुले रास्ते!
कई महिलाओं के अनुभवों पर आधारित एक रिपोर्ट में कहा गया कि महिलाएं हैरिस की जीत से बेहद उत्साहित हैं. एक असिस्टेंट प्रोफेसर शनाया ग्रे के हवाले से कहा गया कि यह खबर ही रोमांचक है कि ‘कोई अश्वेत और प्रवासी अमेरिकी महिला उपराष्टपति बनी. अमेरिका में ऐसा नहीं होता रहा है. हमारे बच्चियों और बच्चों के सामने अब एक रोल मॉडल है और वो इससे प्रेरणा ले सकते हैं.’
इसी तरह कई अश्वेत महिलाओं ने माना कि हैरिस की जीत से उन्हें निजी तौर पर गर्व ही नहीं बल्कि भविष्य के लिए काफी आशा भी जगी. इसे अश्वेतों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और सपनों के हकीकत में बदलने जैसा मौका माना जा रहा है.
बराक ओबामा से तुलना
100 ब्लैक महिलाओं के राष्ट्रीय संगठन की सचिप क्वांडा बेकर के हवाले से रिपोर्ट कहती है कि हैरिस की जीत तकरीबन उसी तरह अहम है जैसे 2008 में बराक ओबामा का राष्ट्रपति बनना था. बेकर ने यह भी कहा कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वो अपनी ज़िंदगी में ऐसा होते देख सकेंगी. ‘हैरिस के चुनाव जीतने से लोगों का अश्वेत महिलाओं के प्रति नज़रिया तो बदलेगा ही, अश्वेत महिलाओं का खुद के लिए भी बदलेगा.’
भारतीय समुदाय में बेपनाह उत्साह
हैरिस ने अपने चुनाव अभियान में अपनी हिंदोस्तानी जड़ों, अपनी मां के योगदान का ज़िक्र बार बार किया और इसका खासा प्रभाव पड़ा. हैरिस के भाषणों की भाषा और इमोशन ने वोटरों के बीच एक पकड़ बनाने में मदद की. प्रवासी मामलों के लिए न्यूयॉर्क की पहली महिला कमिश्नर सयु भोजवानी के हवाले से कहा गया कि हैरिस की जीत इस बात का इशारा भी है कि एक अमेरिकी नेता को कैसा होना चाहिए.
क्या हैरिस के लिए कांटों का ताज है?
भोजवानी के मुताबिक कई प्रगतिशील दक्षिण एशियाई हैरिस से मतभेद रखते हुए भी उनसे प्रभावित रहे. हैरिस पर एक अच्छा खासा प्रशासनिक दबाव होगा और साथ ही, यह भी नहीं समझा जाना चाहिए कि उनकी इस जीत का मतलब यह है कि लोग उन्हें जल्द ही प्रेसिडेंट के रूप में देखना चाहते हैं. ‘इस देश में अश्वेत महिलाओं के लिए एक द्वेष का माहौल रहा है इसलिए हैरिस के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी.’
इन सब अनुमानों के बीच एक पॉज़िटिव बात यह भी है कि अमेरिका में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बेहतर होती दिख रही है. AAPI डेटा सर्वे में कहा गया कि चीनी और जापानी अमेरिकियों की तुलना में भारतीय अमेरिकियों की राजनीतिक भागादारी का ट्रेंड बेहतर है. यही नहीं, कांग्रेस की सभी सीटों में से 30% पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व है. कुल मिलाकर उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही ‘और कई कमला हैरिस’ सुर्खियों में होंगी.
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