बलरामपुर,पवन कश्यप-: जनसंघ के संस्थापक प्रखर राष्ट्रवाद तथा एकात्मक मानववाद के प्रेणता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की 104 वीं जयंती पर भाजपा मंडल रामानुजगंज के भाजपा कार्यकर्ताओं भाजपा कार्यालय रामानुजगंज में उनके छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती मनाई..
पूर्व जिला महामंत्री अनूप तिवारी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी पर डाला प्रकाश..
भाजपा कार्यालय रामानुजगंज में उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पूर्व जिला महामंत्री अनूप तिवारी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा की दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 को राजस्थान के धन्किया में एक मध्यम वर्गीय प्रतिष्ठित हिंदू परिवार में हुआ था.
उनके परदादा का नाम पंडित हरिराम उपाध्याय था, जो एक प्रख्यात ज्योतिषी थे. उनके पिता का नाम श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा मां का नाम रामप्यारी था. उनके पिता जलेसर में सहायक स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत थे और माँ बहुत ही धार्मिक विचारधारा वाली महिला थीं. इनके छोटे भाई का नाम शिवदयाल उपाध्याय था. दुर्भाग्यवश जब उनकी उम्र मात्र ढाई वर्ष की थी तो उनके पिता का असामियक निधन हो गया.
इसके बाद उनका परिवार उनके नाना के साथ रहने लगा. यहां उनका परिवार दुखों से उबरने का प्रयास ही कर रहा था कि तपेदिक रोग के इलाज के दौरान उनकी माँ दो छोटे बच्चों को छोड़कर संसार से चली गयीं. सिर्फ यही नहीं जब वे मात्र 10 वर्षों के थे तो उनके नाना का भी निधन हो गया, बाद में दीनदयाल उपाध्याय जी एक तरह से ग्रिहस्त जीवन को त्याग चुके थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक भारतीय विचारक, अर्थशाष्त्री, समाजशाष्त्री, इतिहासकार और पत्रकार थे.
उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई और भारतीय जनसंघ (वर्तमान, भारतीय जनता पार्टी) के अध्यक्ष भी बने. इन्होने ब्रिटिश शासन के दौरान भारत द्वारा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी लोकतंत्र का आँख बंद कर समर्थन का विरोध किया. यद्यपि उन्होंने लोकतंत्र की अवधारणा को सरलता से स्वीकार कर लिया, लेकिन पश्चिमी कुलीनतंत्र, शोषण और पूंजीवादी मानने से साफ इनकार कर दिया था. इन्होंने अपना जीवन लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने और जनता की बातों को आगे रखने में लगा दिया, भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 1951 में किया गया एवं दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया.
वे लगातार दिसंबर 1967 तक जनसंघ के महासचिव बने रहे. उनकी कार्यक्षमता, खुफिया गतिधियों और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनके लिए गर्व से सम्मानपूर्वक कहते थे कि- ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं’. परंतु अचानक वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी.
इस प्रकार उन्होंने लगभग 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की. भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. 19 दिसंबर 1967 को दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी उत्तरप्रदेश के बलरामपुर से सांसद भी चुने गए पर उन्हीने कभी ट्रेन या हवाई जहाज का रिजर्वेशन सीट नहीं अपनाया वे हमेशा जनरल बोगी की सवारी करते और लोगों से सीधा संपर्क में रहते थे,.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी जिस भीड़ में चर्चा करते और तर्क वितर्क करते वह भीड़ उपाध्याय जी का कायल हो जाता था और ये बढ़ती लोकप्रियता तात्कालिक कांग्रेस सरकार को गवारा नहीं हुआ, 11 फ़रवरी, 1968 की सुबह मुग़ल सराय रेलवे स्टेशन पर दीनदयाल का निष्प्राण शरीर पाया गया. जिसकी जांच आज तक नहीं हो पाई, यदि उस समय उनकी मृत्यु की जांच रिपोर्ट आ जाती तो कांग्रेस सरकार की तख्ता पलट जाती शायद इसीलिए आज तक यह मृत्यु एक अनसुलझी कहानी बनकर रह गई.
सभा समाप्ति की घोषणा शर्मिला गुप्ता ने किया..
अंत मे मंडल अध्यक्ष श्रीमती शर्मिला गुप्ता ने उपस्थित समस्त भाजपा कार्यकर्ताओं को आभार व्यक्त कर सभा समाप्ति की घोषणा की, इस अवसर पर रामानुजगंज मण्डल के समस्त पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे ।
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