रायपुर। छात्र पालक संघ के प्रदेश अध्यक्ष नजरूल खान ने छत्तीसगढ़ शासन के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और शिक्षा सचिव को पत्र लिखकर निजी स्कूल संचालकों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग करते हुए शासन को अवगत कराया कि प्रदेश में आम पालकों की आर्थिक दशा क्या है इस संबंध में आपको समस्त जानकारी होने के पश्चात भी जिस तरह से पालकों पर दबाव डालकर और बच्चों को स्कूल से निकालने की धमकी देकर बंद स्कूल की भी फीस वसूली की जा रही है, इससे ये प्रतीत होता है कि राज्य में निजी स्कूल संचालकों की मनमानी के आगे राज्य शासन और राज्य शासन का शिक्षा विभाग पूरी तरह नतमस्तक है।
कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए जिस तरह से राज्य के समस्त नागरिकों ने जो एक पालक भी हैं के द्वारा राज्य शासन के एक आदेश पर अपनी जीविका चलाने हेतु आय के तमाम स्त्रोतों को पूर्णत: खत्म करते हुए अपने परिवार को अपने घरों में कैद कर लिया और अपनी जमा पूंजी से ही लगभग पिछले 5 महीनों से अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं, ताकि प्रदेश कोरोना नाम की महामारी से सुरक्षित रह सके।
राज्य शासन के आदेश पर आर्थिक नुकसान सहने के पश्चात भी पालकों द्वारा किसी तरह के मुआवजे या आर्थिक राहत की कोई मांग राज्य शासन से नहीं की गई, ताकि राज्य शासन पर किसी तरह का कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ ना आये, किंतु इतने सहयोग के बाद भी राज्य शासन के द्वारा प्रदेश में शिक्षा जैसे सेवा कार्य को व्यापार बनाकर शिक्षा बेचने वाले निजी स्कूल संचालकों के द्वारा पालकों से बंद स्कूल की फीस वसूली के लिये दबाव बनाने पर भी उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई और ना ही कोरोना महामारी के इस लॉकडाउन में नो स्कूल-नो फीस जैसे कोई कड़े आदेश निकाले गए जिससे प्रदेश के लाखों पालकों में कितना आक्रोश है इससे राज्य शासन अनभिज्ञ नहीं है।
निजी विद्यालयों द्वारा फीस वसूली के लिए केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए जो ऑनलाइन कक्षाएं वाट्सएप्प के माध्यम से संचालित की जा रही है, इस संबंध में भी राज्य शासन द्वारा कोई भी गाइडलाईन निजी संचालकों के लिए जारी नहीं की गई है, जो ऑनलाइन शिक्षा निजी विद्यालयों द्वारा फीस के लालच में पालकों पर थोपी जा रही है, उससे अच्छी शिक्षा नि:शुल्क देने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा (विद्या दान) और सीजी बोर्ड के द्वारा कई एप्लिकेशंस बनाये गए गए हैं। कई बच्चे एनसीईआरटी और साल्युशन के नाम से बने ऐप को डाउनलोड करके भी नि:शुल्क ऑनलाइन शिक्षा ले सकते हैं, लेकिन राज्य शासन द्वारा पालकों को राहत पहुंचाने या छात्रों की शिक्षा के हित में भी इस लाकडाउन में कोई कार्य नहीं किया।
पालक संघ के अध्यक्ष ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और शिक्षा सचिव को साफ तौर पर बताया कि जिन पालकों के पास स्मार्ट फोन नहीं है या जिनके 2 या 3 बच्चे पढ़ रहे हैं जो लाखों गरीब बच्चे नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम के तहत इन्हीं निजी विद्यालयों में अध्यनरत हैं जिनका शिक्षण शुल्क भी शासन वहन करती है वो अपने समस्त बच्चों के लिए किस तरह से स्मार्ट फोन की व्यवस्था करेंगे, इस संबंध में भी सरकार के द्वारा कोई भी उचित व्यवस्था नहीं की गई है।
राज्य शासन के शिक्षा विभाग के संरक्षण में जिस तरह निजी विद्यालय संचालकों ने मान्यता की शर्तों के साथ राज्य शासन, संबंधित बोर्ड और शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन कर करोड़ों रुपये लाभ के रूप में अर्जित किये हैं, इसके अलावा एक स्कूल से कई स्कूल और करोड़ों की संपत्ति बनाने वाले स्कूल संचालकों की संपत्ति की जांच कभी भी राज्य शासन या शिक्षा विभाग के द्वारा नहीं की गई।
किताबों और ड्रेस पर प्रतिवर्ष लाखों रुपये का कमीशन खोरी कर शिक्षा के संसाधनों को महंगा करने वाले निजी स्कूल संचालकों के विरूद्ध भी आज तक राज्य शासन या शिक्षा विभाग के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। पालक संघ और अन्य समाजसेवियों की शिकायत पर नियमत: जांच कर जिन विद्यालयों पर करोड़ों रूपये का अर्थदंड लगाया गया, उसे भी राज्य शासन के द्वारा वसूल नहीं किया गया जो पालकों के मन में कई तरह की आशंका को बल प्रदान करता है।
पालक संघ ने छत्तीसगढ़ शासन को इस बात से अवगत कराया कि महंगी शिक्षा खरीदकर कोई भी पालक या छात्र देशहित में कभी भी कोई नि:स्वार्थ कार्य नहीं करेगा जो किसी भी महामारी के वक्त जरूरत की सामानों को महंगे दर पर बेचे जाने के रूप में देखा जा सकता है।इ स पर भी शासन का ध्यान आकर्षण करवाना मेरा कर्तव्य है।
छात्र पालक संघ के प्रदेश अध्यक्ष नजरूल खान ने मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और प्रमुख शिक्षा सचिव से अलग लग पत्र के माध्यम से मांग की है कि शिक्षा जैसे सेवा कार्य को व्यापार बनाकर बेचने वाले समस्त निजी संचालकों की जब तक समस्त संपत्ति की जांच नही हो जाती और शिक्षा को बेचकर अर्जित की गई अवैध संपत्ति को जप्त कर पालकों के मन में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रति खत्म हो गयी विश्वसनीयता को पुन: जागृत नहीं किया जाता और समस्त स्कूलों के द्वारा वसूली जाने वाली फीस को ना लाभ ना हानि के मापदंड के आधार पर तय नहीं किया जाता। तब तक किसी भी स्कूल को फीस लेने पर कड़े से कड़े आदेश देकर रोक लगाये।
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