रायपुर। कोरोना कॉल में लॉकडाउन के बाद आर्थिक तंगी सहित अन्य कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे बच्चों के पालकों को अभी से विद्यालयों की फीस की चिंता सताने लगी है।
कोरोना महामारी के चलते भले ही अप्रैल से अभी तक सभी शासकीय व निजी विद्यालय बंद है और आदेशानुसार आगामी अगस्त माह मेें 15 तारीख तक बंद रहेंगे, लेकिन इसके बावजूद पालकों को बच्चों की फीस को लेकर चिंता सताने लगी है। क्योंकि केन्द्रीय विद्यालयों के अलावा राज्य के निजी विद्यालयों के प्रबंधकों द्वारा भी लगातार बच्चों के पालकों पर अप्रैल माह से लेकर जून माह तक की फीस को जमा कराने लगातार दबाव बनाया जा रहा है।
केन्द्रीय विद्यालयों के अलावा कई निजी विद्यालयोंं में पढऩे वाले बच्चों के पालकों ने विद्यालयों से उनके बच्चों का कहीं नाम काट नहीं दिया जाए के भय से अभी तक की फीस भी जमा करा दी गई है।
एक ओर जहां कोरोना काल में लॉकडाउन से लेकर अनलॉक-2 में प्रवेश करने तक की स्थिति में भी कई नौकरीपेशा लोग जहां बेरोजगार हो गए है, वहीं कई लोगों के वेतन में 30 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक की कटौती कर दी गई है। यहीं स्थिति छोटे व्यवसायियों की भी है। कई व्यवसायियों की दुकानें तक बंद हो गई, तो कई व्यवसायियों की आवक इतनी कम हो गई है कि वे अब सिर्फ अपना और अपने परिवार का पेट भर पा रहे है।
यहीं नहीं नौकरीपेशा और व्यवसायियों में कई लोग ऐसे भी है जो किराये के मकान या दुकान है। यहीं नहीं कई लोग तो बैंक और अन्य कई तरह के ऋण तक लिए हुए है, जिनकी किश्त तक वे नहीं जमा कर पा रहे है। ऐसे हालातों से गुजर रहे लोगों के सामने उनके बच्चों की फीस भी चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है। कुछ बच्चों के पालकों से जब बातचीत की गई तो उनका कहना है कि शासन को इस मामले में बड़ा निर्णय लेना चाहिए।
पालकों का कहना है कि सरकार को सबसे पहले स्कूलों की फीस निर्धारित करनी चाहिए। साथ ही कोरोना काल में जिस महीने से स्कूल खुलेंगे तब से फीस लिया जाए यह सुनिश्चित कराना चाहिए। उनका कहना है कि स्कूलों द्वारा अप्रैल माह से लेकर फीस पालकों से मांगी जा रही है जो सरासर गलत है।
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में हर व्यक्ति परेशान हुआ है और हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति बिगड़ी है। ऐसे में स्कूलों द्वारा अपनी भरपाई कराने के लिए बच्चों के पालकों पर दबाव बनाया जाना उचित नहीं है।
Add Comment