पूर्वी लद्दाख की गलवां घाटी में 15-16 जून की दरमियानी रात को हुई हिंसक झड़प के दो दिनों बाद तक चीन दो तरह की बातें करता रहा। एक तरफ जहां वो शांति की बात कर रहा है वहीं दूसरी तरफ गलवां घाटी पर दावा ठोक दिया। अपने 20 जवानों के शहीद होने पर भारत ने फैसला लिया है कि यदि चीन चालबाजी से अपने कदम आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी। यह बात एक उच्च अधिकारी ने कही।
अधिकारी ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत की सीमा प्रबंधन के लिए शांति बनाए रखने की नीति बदल गई है। वहीं पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के लिए जब चाहे चले आने का विकल्प खत्म हो गया है। भारतीय सेना इस समय 3,488 किमी की एलएलसी और पूर्वी क्षेत्र पर अब तक की सबसे ज्यादा मुस्तैद पोजिशन पर तैनात है।
चीन ने भी एलएसी पर अपनी सेना बढ़ाई है खासतौर से गलवां, बेग ओल्डी, देपसान्ग, चुशुल और पूर्वी लद्दाख के दूसरे इलाकों में। मगर ऐसा लग रहा है कि भारतीय सेना युद्ध के लिए पूरी तरह से अलर्ट पर है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक एलएसी पर सेना किसी भी तरह की स्थिति का सामना करने के लिए मुस्तैद है। पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर 15 हजार सैनिक फॉरवर्ड इलाकों में हैं और इससे भी ज्यादा उनके पीछे खड़े हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एक सूत्र ने कहा, ‘हमारे सैनिक पीछे नहीं हटेंगे। हमारी क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं होगा। चीन जमीन पर इस तरह की आक्रामकता लंबे समय से कई बार दिखा चुका है। वे हमारे क्षेत्र में आते हैं, बेफिजूल के दावे करते हैं और उन्हें सच मानकर दोहराते रहते हैं और फिर भारत को आक्रामक बताने की कोशिश करते हैं। अब इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। पीएलए को अब क्षेत्र छीनने की अपनी हर कोशिश का नुकसान भुगतना होगा।’
माना जा रहा है कि यह कड़ा रवैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच हुई बैठक का नतीजा है। वहीं रक्षा मंत्री ने मंगलवार और बुधवार को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाध्यक्षों के साथ सीमा की स्थिति की समीक्षा की। भारतीय डिफेंस इस प्रोटोकॉल पर भी दोबारा विचार कर रहा है जिसके तहत सैनिक एलएसी के फॉरवर्ड इलाकों में फायरआर्म्स नहीं लेकर जाते हैं।
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