रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी अब इस दुनिया में नहीं रहे। अजीत जोगी ने रायपुर के देवेन्द्र नगर स्थित नारायणा अस्पताल में 3:30 बजे आखिरी सांस ली। जोगी लंबे समय से तबीयत खराब होने की वजह से अस्पताल में भर्ती थे। आईपीएस और फिर आईएएस से लेकर मुख्यमंत्री पद तक का सफ़र तय करने वाले अजीत जोगी राजनीति के धुरंधरों में गिने जाते रहे हैं।
नंगे पैर स्कूल जाने से लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई और ईसाई धर्म अपनाने से लेकर प्रशासनिक सेवा तक के सफ़र ने जोगी को परिपक्व बना दिया था। जोगी को ‘सपनों का सौदागर’ भी कहा जाता रहा है। साल 2000 में जब जोगी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो जोगी ने ख़ुद अपने को ‘सपनों का सौदागार’ कहा था।
उन्होंने कहा था कि- ‘हाँ मैं सपनों का सौदागर हूँ। मैं सपने बेचता हूँ।’ अजीत जोगी ने कांग्रेस को अलविदा कह प्रदेश में अपनी एक नई पार्टी बनाई। मज़बूत और ज़मीनी पकड़ रखने वाले क्षेत्रीय दल की कमी की वजह से प्रदेश के लोगों के पास भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के रूप में बस दो ही विकल्प थे।
अजित जोगी ने विकल्प देने के लिए जनता जोगी कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम के एक राजनीतिक दल का गठन किया, वो भी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले। फिर उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करते हुए खुद के बारे में कहा कि इन चुनावों में वो ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाएंगे। यानी जिसे वो चाहेंगे उसके हाथों में छत्तीसगढ़ की सत्ता की बागडोर होगी।
लेकिन उनका ये गठबंधन कामयाब नहीं हो पाया और कांग्रेस की लहर में भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का भी प्रदर्शन निराशाजनक रहा। अजीत जोगी की पार्टी 2018 विधानसभा चुनावों में भी सिर्फ़ तीन सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई।
हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि अजीत जोगी का कांग्रेस पार्टी से जाना उनके लिए ‘वरदान’ बन गया। बघेल में कहा कि, ‘अगर अजीत जोगी पहले चले गए होते तो कांग्रेस प्रदेश में पहले ही सत्ता पर काबिज हो जाती।’ सीएम बघेल ने जोगी पर पार्टी के अंदर रहकर पार्टी को ही ज़्यादा नुकसान पहुंचाने के साथ कांग्रेस के प्रत्याशियों को हरवाने का भी आरोप लगाया था।
वहीं कांग्रेस पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अपने मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने विकास के काम तो किए। लेकिन जल्द ही उनकी छवि ‘सपनों के सौदगर’ की नहीं बल्कि ‘डर के सौदागर’ की बननी शुरू हो गई। जोगी ने मुख्यमंत्री बनते ही भारतीय जनता पार्टी में सेंध मार दी और उनके 12 विधायकों को अपने साथ शामिल कर लिया था।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस पार्टी का हाई कमान उन पर इसी खूबी की वजह से ही भरोसा करता था और छत्तीसगढ़ के मामलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं करता था। जोगी की जिन्दगी में नई चुनौती साल 2004 में आई। जोगी एक सड़क हादसे में वो बाल बाल बच तो गए लेकिन उनकी कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर चुका था और वो ‘व्हील चेयर’ पर आ गए।
यह हादसा भी उनके जज़्बे को कम नहीं कर पाया और कांग्रेस पार्टी में उनकी इच्छा के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता था। मामला चाहे टिकट का बंटवारे का हो या टिकट काटने का। जब ‘सपनों के सौदागर’ को सामना करना पड़ा था हार का 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में ‘सपनों के सौदागर’ को हार का सामना करना पड़ा। फिर 2008 में और 2013 में भी वो सपने नहीं बेच पाए।
इसके बाद 2018 विधानसभा चुनावों के ठीक पहले उन्होंने हुकुम का इक्का फेंका और एक नई पार्टी बना ली। हालांकि उनका हुकुम का इक्का अभी तक कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया है। लेकिन जोगी जनता कांग्रेस पार्टी का निर्माण भविष्य में छत्तीसगढ़ की राजनीति में नये मोड़ ला सकता है।
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