भोपाल। लॉकडाउन ने मजदूरों की कमर ही तोड़ दी है। कमाने-खाने बाहर गए मजदूरों पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा हो। ना काम है ना रहने को छत, ना खाने के लिए राशन, ना ही घर वापसी के लिए कोई साधन। ऐसी स्थिति में पैदल चलाना ही उनकी मजबूरी है।
इस बीच पैदल अपने गांव वापस जा रही एक गर्भवती महिला ने रास्ते में ही एक बच्चे को जन्म दिया। लेकिन पीडि़त महिला और उसके परिवार की मदद के लिए कोई सामने नहीं आया।
मजबूरी ऐसी थी कि प्रसव के दो घंटे बाद महिला फिर पैदल चल पड़ी। चलते-चलते 170 किलोमीटर दूर अपने राज्य के बार्डर पर पहुंची तक जाकर महिला को मदद मिली।
महाराष्ट्र से नासिक से पैदल चलकर एक मजदूर परिवार मध्यप्रदेश के सतना आ रही थी। इस बीच परिवार की एक महिला ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया है। नासिक के आगे पीपरगांव में महिला का प्रसव हो गया।
रास्ते में इस दौरान महिला और उसके परिवार को किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल सकी। गांव की ही कुछ महिलाएं रास्ते में कदम-कदम पर महिला का हौसला बढ़ाती रहीं और प्रसव के दो घंटे बाद महिला फिर चल पड़ी।
अपने नवजात को गोद में उठाकर 170 किलोमीटर पैदल चलने के बाद मध्य प्रदेश के बिजासन बॉर्डर पहुंचे तब उन्हें मदद मिली। जब उचेहरा के नजदीक इचौल पहुंची तो प्रशासन ने उसे जननी एक्सप्रेस मुहैया कराई। अभी जच्चा-बच्चा को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र उचेहरा में भर्ती कराया गया है। दोनों की हालत खतरे से बाहर है।
पीडि़त महिला शंकुतला के पति राकेश कोल ने बताया कि नासिक से चले थे। पीपरगांव में मेरी पत्नी को दर्द शुरू हो गया। रास्ते में ही डिलिवरी हो गई। हमारे गांव की 4-5 महिलाएं थीं और साड़ी की आड़ बनाकर प्रसव कराया। फिर हम लोगों ने दो घंटे आराम किया आगे की तरफ पैदल चल दिए।
सतना के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर एके रॉय ने कहा कि हमें पता चला कि सीमा पर प्रशासन ने उनके लिए एक बस की व्यवस्था की, और जैसे ही वो उचेचेरा पहुंचे हम उन्हें यहां ले आए। सभी चेक-अप हो चुके हैं, मां और बच्चा दोनों ठीक हैं।
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