अधिवक्ता अखंड प्रताप पांडेय ने लगाई जनहित याचिका, मौलिकों अधिकारों के हनन का दिया हवाला
रायपुर। छत्तीसगढ़ कार्यपालक शासन के गोपनीय कार्य नियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में अधिवक्ता अखंत प्रताप पांडेय ने लगाई गई है। उन्होंने अपनी याचिका में राज्यपाल द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 166 के खंड (2) (3) में प्राप्त शक्ति के प्रयोग में कार्यपालक शासन के लिए बनाए गए गोपनीय कार्य नियम को संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन बताया है। श्री पांडेय ने अपनी याचिका में कहा है कि कार्य नियम गोपनीय है अत: वह लोकतंत्र व पारदर्शिता के विपरीत है और भ्रष्टाचार का अवसर देती है। श्री पांडेय ने कहा कि जनता को कार्यपालक व्यवस्था के काम करने की प्रक्रिया की जानकारी न देने से उनके प्रतिनिधि का चुनाव करने का अधिकार प्रभावित होता है, क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं होती की उनके द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि कैसे अपने कार्य कर रहा है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता अखंड प्रताप पांडेय ने कुछ राज्यों के उदाहरण भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 77 के तहत कार्यपालक शासन के कार्य नियम की प्रति प्रस्तुत कर इसे लोक दस्तावेज बताया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के कार्यपालक शासन गोपनीय कार्य नियम को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध न्यायालय से किया है। मामले में सुनवाई सोमवार को न्यायाधीश शरद गुप्ता की खंडपीठ में होनी थी, लेकिन न्यायाधीश की अनुपस्थिति की वजह से न्यायाधीश प्रशांत मिश्रा और न्यायाधीश आरपी शर्मा की बेंच ने मामले को सुना। हाईकोर्ट में शासन का पक्ष अतिरिक्त महाधिवक्ता वायएस ठाकुर ने रखा। उन्होंने इस नियम के संबंध में कहा कि यह राज्यपाल का विशेषाधिकार है। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए उक्त संबंध में निर्देश लेने हेतु उन्हें निर्देशित किया। अधिवक्ता श्री पांडेय ने बताया कि अरण्य राव इडिकर ने छत्तीसगढ़ कार्यपालक शासन के कार्य नियम के संबंध में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी, लेकिन उन्हें नियमों (गोपनीय दस्तावेज) का हवाला देते हुए जानकारी देने से मना कर दिया। उन्होंने बताया के देश के कई राज्यों जैसे गुजरात, मेघालय, गोवा, ओडिशा आदि राज्यों में कार्यपालक नियम को लेकर पारदर्शिता है।
Add Comment