वेलेन्टाईन डे : तामझाम से दूर… जानिए कैसे होता है बस्तर में प्रेम का इजहार

जगदलपुर। शहरिया लोगों की तर्ज पर बस्तर के आदिवासी भी प्रेम निवेदन करने फूलों का सहारा लेते हैं। पूरे विश्व में हंसते मुस्कुराते फूलों की रंग-बिरंगी भाषा दोस्ती और प्रेम की ही है। आधुनिकता की तामझाम से दूर बस्तर के आदिवासी अबूमाडिय़ा नेरोम की लड़ी धुरवा जनजाति के युवक युवतियों को देकर जहां प्रेम का इजहार करते हैं वहीं मेले मड़ई की शुरूआत में बाना टंगिया और गपा देकर भावी जीवन साथी चुनने का संकेत देते हैं। मेले मड़ई का यह साथ बन जाता है, जीवन भर का साथ।
हालांकि इसे गोंचा पर्व पर तुपकी की मीठी मार को सहन करती हंसती खिलखिलाती युवतियां आदिवासी युवकों पर नाराज होने के बजाय अपने जीवन साथी चुनने का कार्य करती हैं। मेले मड़ई में आदिवासी युवा अपने प्रियतम को रिझाने पान के बीड़े, चूड़ी तथा फीता तथा पटका आदि का भी सहारा लेते हैं। धुरवा जनजाति के आदिवासियों ने आज भी अपनी परम्पराओं को बरकरार रखा है। धुरवा जाति के युवक बांस से बनी खूबसूरत टोकरियों तथा बांस की कंघी भेंटकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं, बदले में युवतियां सुनहरे चांदी कलर की पट्टियों वाले लकड़ी की कुल्हाड़ी देकर इसका जवाब देती हैं। यदि दोनों पक्ष इन उपहारों को स्वीकार कर लें तो गांव में जाकर धूमधाम से जातीय रीति-रिवाजों के साथ उनका विवाह संपन्न हो जाता है।
सभ्य समाज की तरह आदिवासी अग्रि के फेरे नहीं लेते बल्कि सरगी की डगाल गाड़कर उसके फेरे लिए जाते हैं। शादी के मण्डप में कलश भी स्थापित किया जाता है। अबूझमाडिय़ा युवती अपने प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए अपने बालों में सजे मूंगे और मोतियों से बने माला को अपने प्रेमी के गले में डाल देती हैं। अबूझमाडिय़ों के लिए नेरोम और बांस से बनी कंघी प्रेम की मौन भाषा को अभिव्यक्त करने का सशक्त जरिया है। वैसे आदिवासियों की इस परम्परा जो उपहार देने व लेने से संबंधित है, लेखक इसकी तुलना सभ्य समाज के वेलेन्टाईन डे से करता है, किन्तु इसे पश्चिमी सभ्यता से जोड़कर देखना सर्वथा गलत होगा। बस्तर के भोले भाले आदिवासी मादल की थाप पर थिरकते रहते हैं, नृत्य और गीत उनके जीवन का अनमोल खजाना है। खुशी से थिरकते मादल की थाप पर न जाने कब से नाच रहा है बस्तर का आदिवासी।