कोरोना वायरस से देश और दुनिया में जंग जारी है. पूरे देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन है. लॉकडाउन के बीच ही 9 अप्रैल गुरुवार को शब-ए-बारात भी है. मुस्लिम समुदाय के लिए ये इबादत की रात होती है. लोग इस दिन अपने बुजुर्गों की कब्र पर जाते हैं. हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते उलेमाओं ने इस बार घर से ही इबादत करने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बाहर न निकलने की अपील की है. शब-ए-बारात की रात में कब्रिस्तान न जाने की भी सलाह दी गई है.
दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद के शाही मौलाना मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने कहा कि शब-ए-बारात इबादत की रात है. इस दिन कब्रिस्तान जाना जरूरी नहीं होता है. इसीलिए सभी अपने घरों में ही रहकर इबादत करें और अपने रिश्तेदारों के अलावा पूरे मुल्क व दुनिया की सलामती के लिए दुआ करें. कोरोना वायरस को फैलने से रोकने का एक यही तरीका है कि हम अपने-अपने घरों में रहें. लॉकडाउन का पालन करें और कानून को अपने हाथ में न लें.
मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी ने कहा कि शब-ए-बारात को अपने घर से ही मनाएं. मौजूदा समय में बीमारी से अपनी और दूसरों की जान बचाना फर्ज है और ज्यादा जरूरी है. कोरोना के चलते जब दुनिया भर की मस्जिदें बंद हैं और लोग अपने-अपने घरों से नमाज पढ़ रहे हैं तो घर से ही शब-ए-बारात की रात इबादत करें. उन्होंने कहा कि कब्रों पर जाना जरूरी नहीं है, इसीलिए घरों से ही अपने बुजुर्गों की मगफरत (माफी) की दुआ करें. इस वक्त सबसे ज्यादा उनके लिए दुआ करना जरूरी है, जो लोग अपनी जान को जोखिम में डालकर इस बीमारी से दूसरे लोगों की जान बचाने में जुटे हैं.
कोरोना संक्रमण के चलते उत्तर प्रदेश के सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने शब-ए-बारात के मद्देनजर सभी धर्मस्थलों (मस्जिद-मकबरा) और कब्रिस्तानों के ट्रस्टियों और प्रबंध समितियों को निर्देश दिया है कि लोगों को परिसर में प्रवेश न दें. सुन्नी वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैयद मोहम्मद शोएब ने कहा कि शब-ए-बारात के मौके पर सभी लोग धार्मिक स्थलों और कब्रिस्तानों पर जाने के बजाय घर के ही इबादत करें. साथ ही मुस्लिम धर्मगुरुओं से अपील की है कि लोगों को घर से इबादत के लिए प्रोत्साहित करें.
लखनऊ ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि किसी भी सूरत में घरों से बाहर न निकलें और घर में रहकर ही इबादत करें. कब्रिस्तान में अपने पुरखों व परिवारजनों की कब्रों पर न जाएं बल्कि फातेहा घर पर ही पढ़ें. उन्होंने कहा कि शब-ए-बारात गुनाहों से निजात की रात है. ऐसे में हमें गुनाह से बचना भी है और जहां तक गरीबों के भोजन कराने की बात है तो इससे अच्छा और क्या मौका होगा.
शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने भी शब-ए-बारात पर कहा कि कोई भी कब्रिस्तान न जाए. आतिशबाजी कर जश्न भी न मनाए. ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने भीड़ इकट्ठा कर किसी भी आयोजन करने से मना किया. वहीं, बरेली के मौलाना फहीम अहमद अजहरी ने भी कहा कि समाज के लोग शब-ए-बारात के मौके पर घरों में ही इबादत करें और इस बार कब्रिस्तान न जाएं.
शब-ए-बारात की अहमियत
इस्लाम में शब-ए-बारात का बड़ा महत्व है. बरेली के इमाम अध्यक्ष मौलाना रिफाकत सकलैनी ने बताया कि वैसे तो साल के सभी दिन रात समान हैं, लेकिन इस्लाम में पांच रातें सभी रातों से ज्यादा अहम मानी जाती हैं. इनमें ईद की रात, बकरीद की रात, मेअराज की रात, रमजान में शबे कद्र और पांचवीं रात शब-ए-बारात है. इस रात को की जाने वाली हर जायज दुआ को अल्लाह जरूर कुबूल करते हैं, इस पूरी रात लोगों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. इस रात में पूरे साल के गुनाहों का हिसाब-किताब भी किया जाता है और लोगों की किस्मत का फैसला भी होता है.
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से आठवां यानी शाबान के महीने की 15वीं तारीख की रात में शब-ए-बारात मनाई जाती है. इस रात को लोग न सिर्फ अपने गुनाहों से तौबा करते हैं बल्कि अपने उन बुजुर्गों की मगफिरत के लिए भी दुआ मांगते हैं जिनका इंतकाल हो चुका होता है. यही वजह है कि लोग इस मौके पर कब्रिस्तान भी जाते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते मुस्लिम उलेमाओं ने इस बार कब्रिस्तान पर नहीं जाने की अपील की है.
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