कोलकाता। हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में में देश में पहली बार किसी मामले की सुनवाई का यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीमिंग यानी सीधे प्रसारण का निर्देश दिया है। यह याचिका एक ऐसी पारसी महिला ने दायर की है जिसने गैर-पारसी व्यक्ति से शादी की है। वो अपने बच्चों के लिए पारसी धर्मस्थल अग्नि मंदिर यानी फायर टेंपल में प्रवेश का अधिकार चाहती हैं।
पारसी जोरोस्ट्रियन एसोसिएशन ऑफ कोलकाता यानी पीजेडएसी की वकील फिरोजी एडुलजी ने अदालत में कहा कि इस मामले की सुनवाई देश में पारसी समुदाय के तमाम लोगों के लिए बेहद अहम है। इसके नतीजे से समुदाय के सभी लोगों को फायदा होगा। अब हाईकोर्ट को इस बात का फैसला करना है कि किसी गऱ-पारसी व्यक्ति से शादी करने वाली पारसी समुदाय की महिला के बच्चों को समुदाय के धर्मस्थान अग्नि मंदिर में प्रवेश का अधिकार है या नहीं।
कोलकाता में पारसी समुदाय के लोगों की तादाद विभिन्न वजहों से लगातार घट रही है और अब यह घटकर 500 से भी कम रह गई है। बुधवार को कोलकाता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति कौशिक चंदा की एक खंडपीठ ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए यूट्यूब पर अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण के लिए अदालत कक्ष में दो विशेष कैमरे लगाने का निर्देश दिया है।
इस प्रसारण का खर्च पीजेडएसी को उठाना होगा। एन मेहता और उनकी पुत्री शनाया मेहता व्यास ने मध्य कोलकाता के मेटकाफ स्ट्रीट स्थित पारसी फायर टेंपल में प्रवेश के अधिकार की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की है। शनाया का पति पारसी नहीं है इसलिए पारसी समुदाय की परंपरा के तहत उनको अंग्नि मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार नहीं है, लेकिन पीजेडएसी इस याचिका का विरोध कर रहा है। यह याचिका जोरास्ट्रियन अंजुमन अतश अदारन ट्रस्ट के उन पदाधिकारियों के खिलाफ दायर की गई है जो गैर-पारसी पति से पैदा होने वाले बच्चों को फायर टेंपल में प्रवेश की अनुमति देने के खिलाफ हैं।
ट्रस्ट की दलील है कि चूंकि एक पारसी मां और गैर-पारसी पिता की संतान होने की वजह से उनको यह अधिकार नहीं दिया जा सकता। हालांकि यह दोनों एक धार्मिक समारोह के जरिए पारसी समुदाय का अंग बन चुके हैं। अदालत ने फिलहाल इस मामले की सुनवाई की तारीख तय नहीं की है। इससे पहले हाईकोर्ट की एकल पीठ ने लाइव प्रसारण की याचिका खारिज कर दी थी। उसके बाद याचिकाकर्ताओं ने खंडपीठ में उस फैसले को चुनौती दी थी। फायर टेंपल में प्रवेश की अनुमति देने संबंधी मूल याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति देवांग्शु बसाक करेंगे, लेकिन फिलहाल सुनवाई की तारीख तय नहीं की गई है।
अदालत के फैसले पर पारसी समुदाय ने खुशी जताई है। कोलकाता में वर्ष 1909 में पारसी मुसाफिरों के लिए बने माणकजी रुस्तमजी धर्मशाला के मैनेजर दारा हंसोटिया कहते हैं, इस मामले से परंपरा जुड़ी है। इसके सीधे प्रसारण से पूरे पारसी समुदाय को फायदा होगा।
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