
शिव डाहरिया व शिशुपाल शोरी ने लगाए राज्य सरकार पर आरोप
रायपुर। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के संबंध में जो फैसला दिया है जो उसके लिये केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार दोषी है। अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम विशेष अधिनियम है जिसे अनुसूचित जाति, जनजाति के विरूद्ध हो रहे शोषण एवं अत्याचार के मामलों में त्वरित एवं कठोर कार्यवाही करने की दृष्टि के लिये लागू किया गया हैं। मंगलवार को कांग्रेस भवन में कार्यकारी अध्यक्ष शिवकुमार डाहरिया और प्रदेश आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष शिशुपाल शोरी ने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लेने से पहले केंद्र की मोदी सरकार से इस अधिनियम के बारे में राय मांगी थी और भाजपा सरकार के यह कहने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया कि देश में इस कानून को दुरूपयोग होता है। सच यह है कि देश में प्रचलित सभी कानूनों की दुरूपयोग की बराबर आशंका बनी रहती है।
सुप्रीम कोर्ट 20 मार्च 2018 को यह फैसला दिया था, लेकिन चूंकि भाजपा सरकार इससे सहमत थी इसलिये वह हाथ में हाथ धरे तमाशा देखती रही। जब दो अप्रैल को देश भर के अनुसूचित जाति एवं जनजाति संगठनों ने भारत बंद का आव्हान किया तब आनन-फानन में पुनर्विचार याचिका दायर की गई। यदि केन्द्र सरकार ने समय रहते समुचित पहल की होती तो 2 अप्रैल के भारत बंद को टाला जा सकता था। 2 अप्रैल की घटना जिसमें 14 व्यक्तियों की मृत्यु हुई जनधन की भारी क्षति हुई, लाठीचार्ज एवं हजारों व्यक्तियों की गिरफ्तारी हुई इसके लिये भाजपा सरकार पूर्णरूप से दोषी है। मोदी सरकार समझती है कि पुनर्विचार याचिका के नाम पर देश के अनुसूूचित जाति और जनजाति के लोंगो को टाल कर रखा जा सकता है। इसलिये वह तत्काल कदम नहीं उठा रही है, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो जाये। इसका रास्ता यह है कि मोदी सरकार तत्काल अध्यादेश जारी करे लेकिन आरएसएस और भाजपा चाहते ही नहीं है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को राहत मिले, इसलिये अध्यादेश जारी नही हो रहा हैं, जो चालकी केंद्र में नरेन्द्र मोदी कर रहे है, वहीं चालाकी राज्य में रमन सिंह कर रहे है।
पहले पुलिस मुख्यालय से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन हेतु परिपत्र जारी कर दिया गया और फिर नाटकीय ढंग से मुख्यमंत्री रमन सिंह ने निर्देश देकर इसे वापस ले लिया। हमारा मानना है कि भाजपा सरकार का चुनावी हभकंडा है रमन सिंह ने ऐसा केवल इसलिये किया ताकि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोंगो को भ्रम में रखा जाये कि सरकार उनके हित के बारे में सोच रही है। सच यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दिन से ही पूरे देश में नई गाइड लाइन स्वमेव लागू हो गई है और राज्य सरकार का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर सके। रमन सिंह अब सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने का नाटक करने जा रहे है। प्रचार किया जा रहा है कि सभी भाजपा शासित राज्य इसी तरह की याचिकाएं दायर करेंगे। अगर भाजपा सच में अनुसूचित जाति एवं जनजाति का भला चाहती है तो राज्य सरकारों की ओर से पुनर्विचार का नाटक करने की जगह तत्काल अध्यादेश जारी करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनायें।